नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) फिल्म निर्माता पंकज सक्सेना और मनोचिकित्सा के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर के एक पैनल ने यहां अभिनेता-फिल्म निर्माता गुरुदत्त के जीवन और विरासत पर चर्चा की जिसमें उनकी रचनात्मक प्रतिभा के साथ उनके खामोसी पूर्वक मानसिक स्वास्थ्य से जूझने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
इंडिया हैबिटेट सेंटर (आईएचसी) में बृहस्पतिवार को गुरुदत्त की जन्मशती पर आयोजित एक सत्र में बोलते हुए सागर ने बताया कि कैसे फिल्म निर्माता की भावनात्मक रूप से गहन फिल्में, काम के प्रति जुनून और बढ़ता अलगाव संभवतः उनकी अंतर्निहित मानसिक बीमारी की ओर इशारा करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘व्यक्तिगत समस्याएं, भावनात्मक अलगाव और पेशेवर असफलताओं ने दत्त में बेचैनी और निराशा की गहरी भावना पैदा की होगी। काम के प्रति उनके जुनून ने उन्हें करीबी रिश्तों से और दूर कर दिया होगा, जो आंतरिक संघर्ष के स्पष्ट संकेतों की ओर इशारा करता है। यह एक सटीक प्रवृत्ति है जिसमें काफी समय तक अनसुलझे मुद्दे जुड़ते जाते हैं और (समाधान के लिए) कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता।’’
जहां सक्सेना ने दत्त की फिल्मोग्राफी और उनके सिनेमा जगत की महान हस्ती बनने के पहलू पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं सागर ने दत्त के व्यवहार से जुड़े पैटर्न पर गहराई से प्रकाश डाला। सागर ने ‘नींद में खलल’, ‘अत्यधिक शराब पीना’, ‘धूम्रपान’, ‘भावनात्मक रूप से अलग-थलग पड़ने और बढ़ते अलगाव’ जैसे लक्षणों को अवसाद के संकेतकों के रूप में रेखांकित किया।
प्यासा’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ जैसी उनकी भावनात्मक रूप से गहन और अस्तित्ववादी फिल्मों को उनके आंतरिक उथल-पुथल के प्रतिबिंब के रूप में इंगित करते हुए सागर ने कहा कि यह संभवतः ‘सब्लिमेशन’ का परिणाम था। ‘सब्लिमेशन’ एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति आंतरिक संघर्ष और दर्द को कलात्मक या सामाजिक रूप से मूल्यवान अभिव्यक्तियों में बदल देता है।
उन्होंने आगे कहा, ‘‘गुरुदत्त की फिल्में केवल सिनेमाई प्रतिभा नहीं दर्शाती हैं। वे भावनात्मक दस्तावेज थीं। दर्द, आघात और असफलता अक्सर रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं। उनकी कलात्मकता संभवतः आंतरिक तनाव के लंबे दौर से उभरी थी।’’
उन्होंने ‘प्रदर्शन से जुड़ी चिंता’ के बारे में भी बात की (यह उच्च उपलब्धि हासिल करने वालों में अपने आत्म-मूल्य को सफलता के बराबर समझने की प्रवृत्ति है) उदाहरण के तौर पर ‘कागज के फूल’।
‘कागज के फूल’ को अब एक कालजयी फिल्म फिल्म माना जाता है, लेकिन रिलीज होने पर यह फिल्म व्यावसायिक रूप से असफल रही जिसने गुरुदत्त को एक बड़ा भावनात्मक और पेशेवर झटका दिया और संभवतः उनके मनोवैज्ञानिक तनाव को और गहरा कर दिया।
गुरुदत्त के लिए हर फिल्म उनके लिए निजी मामला थी। दत्त ने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की। एक बार ‘प्यासा’ के निर्माण के दौरान और फिर कुछ साल बाद ‘साहिब, बीबी और गुलाम’ (1962) के निर्माण के दौरान।
शराब और नींद की गोलियों के मिश्रण के चलते गुरुदत्त 10 अक्टूबर, 1964 को मुंबई के पेडर रोड स्थित अपने किराए के अपार्टमेंट में मृत पाए गए थे। उनकी उम्र 39 वर्ष थी।
भाषा संतोष माधव
माधव