उच्च न्यायालय ने व्यक्ति को बरी किया, कहा-सबूत नहीं होने के बावजूद उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया

उच्च न्यायालय ने व्यक्ति को बरी किया, कहा-सबूत नहीं होने के बावजूद उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया

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  • Publish Date - June 19, 2023 / 07:47 PM IST,
    Updated On - June 19, 2023 / 07:47 PM IST

नयी दिल्ली, 19 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2004 में हुई हत्या के एक मामले में सबूत नष्ट करने के आरोप से एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि कोई आपत्तिजनक सबूत नहीं होने के बावजूद उसने कई वर्षों तक मुकदमे का सामना किया।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष को शुरू में उस व्यक्ति के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक सबूत नहीं मिला और यहां तक कि प्राथमिकी या प्रारंभिक आरोपपत्र में भी उसका नाम नहीं लिया गया।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने निचली अदालत के 2011 के फैसले को चुनौती देने वाले विजय बहादुर की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसे आपराधिक साजिश रचने और सबूतों को नष्ट करने के लिए दोषी ठहराया गया था तथा एक साल जेल की सजा सुनाई गई थी।

अदालत ने कहा कि जब अपीलकर्ता और अन्य सह-आरोपी हत्या के मूल और मुख्य आरोप से बरी हो गए, और निचली अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अभियोजन पक्ष बहादुर और अन्य द्वारा हत्या के अपराध को स्थापित करने में विफल रहा, तो उसे सबूत नष्ट करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

उच्च न्यायालय ने कहा कि बहादुर को सबूतों को नष्ट करने के लिए स्वतंत्र रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत मुख्य अपराध किसी भी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ साबित नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि इसके अलावा जांच में विसंगति थी और निचली अदालत के मौखिक निर्देश पर वर्तमान अपीलकर्ता के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल करने में भी त्रुटि हुई।

पीठ ने कहा, ‘‘संबंधित निर्णय (निचली अदालत के) से कुछ असामान्य और दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं और सबसे स्पष्ट यह है कि मौजूदा अपीलकर्ता के खिलाफ वर्तमान मामले में पूरक आरोपपत्र निचली अदालत के मौखिक निर्देश पर दाखिल किया गया था।’’

नवंबर 2004 में एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उसका ड्राइवर अपनी कार के साथ लापता हो गया जिसका इस्तेमाल पर्यटन उद्देश्यों के लिए किया जाता था। जांच के दौरान, ड्राइवर का शव मिला और शिकायतकर्ता द्वारा उसकी पहचान की गई, तथा यात्रा के लिए टैक्सी बुक करने वाले चार लोगों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था। बहादुर को 2006 में पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

उच्च न्यायालय ने पारिस्थितिजन्य साक्ष्य सहित रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए सबूत दोषसिद्धि को लेकर एक ठोस आधार स्थापित करने के लिए स्वाभाविक रूप से अपर्याप्त हैं।

भाषा आशीष नेत्रपाल

नेत्रपाल