हिमंत ने संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की हिमायत की

हिमंत ने संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने की हिमायत की

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  • Publish Date - June 28, 2025 / 09:55 PM IST,
    Updated On - June 28, 2025 / 09:55 PM IST

(फाइल फोटो के साथ)

गुवाहाटी, 28 जून (भाषा) असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने शनिवार को दावा किया कि ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ पश्चिमी अवधारणाएं हैं तथा इन शब्दों को संविधान से हटा दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब देश में आपातकाल था तब इन शब्दों को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया था और इनका भारतीय सभ्यता में कोई स्थान नहीं है।

शर्मा ने कहा, ‘‘मैं पंथनिरपेक्ष कैसे हो सकता हूं? मैं कट्टर हिंदू हूं। मुसलमान व्यक्ति कट्टर मुसलमान होता है। वह पंथनिरपेक्ष कैसे हो सकता है?’’

मुख्यमंत्री असम में ‘द इमरजेंसी डायरीज: इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर’ नामक पुस्तक के विमोचन के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। यह पुस्तक (प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी (जो उस समय आरएसएस के युवा प्रचारक थे) के साथ काम करने वाले सहयोगियों के अनुभवों और अन्य अभिलेखीय सामग्रियों पर आधारित है।

पुस्तक 1975-77 के दौरान आपातकाल और इसके ‘प्रतिरोध आंदोलन’ में मोदी की भूमिका का वर्णन करती है।

शर्मा ने कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे और इन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में आपातकाल के दौरान संविधान में 42वें संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था।

उन्होंने दावा किया, ‘‘ इसने लोगों के संविधान के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया और हमारे राष्ट्रीय जीवन को नुकसान पहुंचाया।’’

उन्होंने कहा कि मूल संविधान में ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द नहीं रखा गया था, क्योंकि अनुच्छेद 14 यह सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

उन्होंने कहा कि ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द उन लोगों द्वारा शामिल किया गया था जो इसे पश्चिमी दृष्टिकोण से देखते हैं, इसलिए इसे प्रस्तावना से हटा दिया जाना चाहिए।

शर्मा ने कहा कि पंथनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा तटस्थ होने के बारे में नहीं है, बल्कि यह ‘सकारात्मक रूप से संबद्ध’ होने के बारे में है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम एक आध्यात्मिक राष्ट्र हैं। अगर लोगों से कहा जाए कि उनके पास अच्छी सड़कें तो हो सकती हैं, लेकिन वे मंदिर या ‘नामघर’ (वैष्णव पूजा स्थल) नहीं जा सकते, तो हमारे लोग मंदिर जाना पसंद करेंगे। हम चीन जैसे देशों की तरह नहीं हैं, जहां तानाशाही शासन है।’’

शर्मा ने कहा कि पश्चिमी देशों को ‘‘तटस्थ’’ रहना होता है क्योंकि उनके पास राजशाही और चर्च के बीच संघर्ष का अपना इतिहास है, जो भारत जैसे देश के लिए लागू नहीं है, जिसका सभ्यतागत इतिहास 5,000 साल पुराना है।

उन्होंने कहा, ‘‘शपथ लेने के बाद हम सभी सबसे पहले कामाख्या मंदिर और बोरदोवा (वैष्णव संत शंकरदेव की जन्मस्थली) जाते हैं, मुसलमान मक्का जाते हैं। हम तटस्थ नहीं हो सकते, लेकिन हम समावेशी हैं।’’

मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि समाजवाद की पश्चिमी अवधारणा भी (इंदिरा) गांधी द्वारा थोपी गई थी जबकि भारतीय आर्थिक सिद्धांत ‘न्यास तत्व’ और हाशिए पर पड़े लोगों की मदद करने पर आधारित था।

उन्होंने कहा कि समाजवाद रूस और चीन जैसे देशों से आया है और यह ‘संघर्ष’ पर आधारित अवधारणा है, वामपंथी समर्थक कई बार इसकी ‘साम्यवाद से सकारात्मक तुलना’ करते हैं।

शर्मा ने कहा, ‘‘ये अवधारणाएं भारत के लिए कभी नहीं थीं। हमारा आर्थिक सिद्धांत धन/समृद्धि को साझा करना है… इस समाजवाद ने हमारी प्रतिस्पर्धात्मकता और क्षमताओं को खो दिया और हम वैश्विक दौड़ में पीछे रह गए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा को समाजवाद की इस अवधारणा को खत्म करने की जरूरत नहीं पड़ी। पी वी नरसिम्ह राव और मनमोहन सिंह ने कांग्रेस के लिए यह काम किया।’’

वह तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्ह राव और तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र कर रहे थे, जिन्हें 1990 के दशक की शुरुआत में भारत में आर्थिक उदारीकरण लाने का श्रेय है।

शर्मा ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण को बाद की भाजपा सरकारों ने आगे बढ़ाया और अब इसका लाभ हाशिए पर पड़े और गरीब तबकों को मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि आपातकाल के कारण राष्ट्र को हुए ‘नुकसान’ पर चर्चा की जाए और ‘आपातकाल की विरासत को मिटाना शुरू किया जाए, ठीक उसी तरह जैसे औपनिवेशिक विरासतों को मिटाया जा रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें आपातकाल को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि हम आपातकाल को दोहरा नहीं सकते।’’

उन्होंने दावा किया कि इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल लगाया था और देश में अशांति की कोई स्थिति नहीं थी, जिससे इसे उचित ठहराया जा सके।

शर्मा ने बांग्लादेश के गठन का हवाला देते हुए गांधी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए।

उन्होंने दवा किया, ‘‘पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीतकर, उन्होंने पूर्वोत्तर की मदद के लिए क्या किया? वह पूर्वोत्तर की देश के बाकी हिस्सों तक सीधी पहुंच के लिए नक्शा फिर से बना सकती थीं और ‘चिकन नेक’ कॉरिडोर पर निर्भर नहीं रह सकती थीं। वह बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों को वापस लेने के लिए कह सकती थीं और वे मान गये होते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह एक शक्तिशाली नेता थीं, लेकिन राष्ट्र के लिए उनका क्या योगदान है। हिटलर भी शक्तिशाली था, लेकिन उसने जर्मनी को नुकसान पहुंचाया।’’

भाषा

राजकुमार अविनाश

अविनाश