कोविड के बीच बेघर बुजुर्ग आजीविका के लिए सड़क पर रुमाल बेचने को मजबूर

कोविड के बीच बेघर बुजुर्ग आजीविका के लिए सड़क पर रुमाल बेचने को मजबूर

  •  
  • Publish Date - September 15, 2020 / 02:45 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:30 PM IST

(गौरव सैनी)

नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) आठ साल पहले कांशीराम शर्मा का घर अतिक्रमण विरोधी अभियान की भेंट चढ़ गया। अब वह यहां खान मार्केट के पास एक मंदिर में रहते हैं और रुमाल और सूती तौलिये बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं।

उनकी कमर में एक पैम्फलेट बंधा नजर आता है, जिस पर लिखा था, “मैं कांशीराम शर्मा, एक वरिष्ठ नागरिक हूं। फिलहाल में खस्ताहाल हूं क्योंकि मेरे पास कोई काम नहीं है। कृपया मेरे पास उपलब्ध कुछ रूमाल, रसोई में इस्तेमाल होने वाले कपड़े और सूती तौलिये खरीदें। अगर आप ये सामान खरीदेंगे तो मैं खुद को जिंदा रख पाउंगा।”

शर्मा (80) को इस पॉश बाजार की कार पार्किंग में सुस्त कदमों से चलते देखा जा सकता है। उनके हाथों में अक्सर रसोई में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों और तौलियों का बंडल होता है।

शर्मा बाजार में नहीं घुस सकते। वह बताते हैं, इसकी वजह यह है कि दुकानदारों को लगता है कि उनके जैसे फेरीवाले कोरोना वायरस फैला सकते हैं।

बेघर बुजुर्ग पहले दक्षिणपूर्वी दिल्ली में दयाल सिंह कॉलेज के निकट भारती नगर की झुग्गियों में रहते थे लेकिन “अतिक्रमण विरोधी एक अभियान के दौरान उसे ढहा दिया गया”।

उन्होंने कहा, “जब यह हुआ उस समय मैं हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में अपने गांव में था।”

शर्मा की तीन बेटियां हैं और सबसे छोटी बेटी जब डेढ़ साल की थी तभी उनकी पत्नी का निधन हो गया था। तीनों बेटियों की शादी के बाद वह अब अकेले हैं। उन्होंने खान मार्केट के पास एक मंदिर में रात को सोना शुरू कर दिया और वही अब बीते आठ सालों से उनका घर है।

उन्होंने कहा, “मैं कभी मेकेनिक था। मेरी पर्याप्त कमाई हो जाती थी और मैं अपनी तीन बेटियों की शादी कर सका।”

लॉकडाउन के दौरान उनकी कोई कमाई नहीं हुई और जो भी रकम उनके पास थी वह उन्होंने दो वक्त के खाने पर खर्च कर दी। अधिकारियों ने जब दुकानें खोलने की इजाजत दी तो दुकानदारों ने उनसे बाजार से दूर रहने को कहा।

उन्होंने कहा, “यह बेहद मुश्किल वक्त है, खास तौर पर मेरे जैसे लोगों के लिये। हम कहां जाएं? क्या करें?” शर्मा ने उम्मीद से कहा, “दुकानदार अगर हमें इजाजत दें तो हम कुछ ज्यादा कमाई कर सकते हैं। वहां काफी ग्राहक हैं।”

भाषा

प्रशांत उमा

उमा