IBC Open Window: ‘आप’ ने यूं ही नहीं किया 2024 में भाजपा से मुकाबले का ऐलान, सहारा तलाशते कांग्रेस वोटरों पर है पैनी नजर!

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  • Publish Date - August 20, 2022 / 12:59 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:58 PM IST

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक

2024 में भाजपा से मुकाबिल कौन होगा? इस सवाल का जवाब पहली बार सीधे तौर पर किसी ने दिया है तो वह है  आम आदमी पार्टी। आप ने यह ऐलान कर दिया है कि वही 2024 में भाजपा का विकल्प बन सकती है। यह कहने के पीछे उसके अपने तर्क हैं। पार्टी ने सिर्फ घोषणा नहीं की है, बल्कि ढहती कांग्रेस के सहारा तलाशते वोटर को अपनी ओर खींचने की पूरी तैयारी के साथ की है।

कांग्रेस के रहते भाजपा का कोई और विकल्प बन जाए, यह इतना  आसान नहीं है, लेकिन यह इतना कठिन भी नहीं। क्योंकि जिस तरह से भाजपा जीत के परचम लहरा रही है, उस हिसाब से विपक्षी राजनीति तभी बचेगी जब विपक्ष यूनाइट हो। सिर्फ यूनाइट ही नहीं हो साफ-सुथरा कोई चेहरा भी दे। सबके बीच उसकी लोकप्रियता को स्वीकारे भी और बढ़ाए भी। यह बात जितनी कहने में आसान है उतनी करने में नहीं। अब सवाल ये है कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए तो भाजपा को हरा सकता है क्या? लेकिन एकजुट हो कैसे और एकजुटता के पैरामीटर क्या हों, इसका लोगों में संदेश क्या जाए?

दरअसल विपक्ष को जब चुनावी आंकड़ेबाजों के समूह आंकड़े दिखाते हैं तो भाजपा पर दबाव बनता है। देश के लगभग 63 फीसद लोग मोदी के विरुद्ध खड़े नजर आते हैं। सिर्फ 37 फीसद लोग ही मोदी के साथ हैं। अगर हम मोदी के एनडीए की बात करें तो बमुश्किल यह  अंक 40  फीसद तक पहुंचता है। 60 फीसद लोग  फिर भी मोदी के विरुद्ध दिखेंगे। परंतु यह सिर्फ आंकड़ों की भाषा है। हकीकत में जमीन पर क्या हालात हैं यह परिलक्षित नहीं होता। ऐसे में विपक्ष कैसे 2024 में जाए अहम सवाल ये है?

एक सिंबल, एक पार्टी, एक चुनाव से बनेगी बात

एक चुनाव विश्लेषक होने के नाते मैं यह कह सकता हूं कि कांग्रेस की ताकत अब राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी नहीं है कि वह अकेले भाजपा से मुकाबला कर सके। लेकिन किसी और की ताकत भी ऐसी नहीं है। तब क्या मैदान खाली छोड़ दिया जाए। नहीं, ऐसा नहीं है। मैदान में तो रहना होगा और एक दल को ही दिखना होगा। पीछे भले ही अनेक दलों की ताकत छिपी हो। इसके लिए दो फॉर्मूले हो सकते हैं, लेकिन दोनों ही फॉर्मूले क्षेत्रीय क्षत्रपों को रास नहीं आएंगे। एक तो यह कि सभी दल डिजॉल्व होकर एक संयुक्त मोर्चा बनाएं। चुनाव में एक कॉमन चुनाव चिन्ह के साथ जाएं। दूसरा सभी दल आपसी सहमित बनाकर कांग्रेस को अखिल भारतीय स्तर पर मदद करें। इनमें पहले फॉर्मूले में सफलता की ज्यादा उम्मीदें हैं, जबकि दूसरे में यह कम। पहले फॉर्मूले में जोखिम भी बहुत  अधिक हैं। क्या बीजू जनता दल चाहेगा कि उसका चिन्ह डिजॉल्व हो जाए, क्या घड़ी चाहेगी कि वह पंजे को पास दे दे,क्या तीर-कामन चाहेगा कि पंजा या लालटैन को पास दे दिया जाए, क्या टीआरएस चाहेगा कि ऐसा हो। बेशक कोई नहीं चाहेगा। तब कॉमन सिंबल की बात ही बेकार है। अब दूसरे फॉर्मूले पर आएं तो कांग्रेस को क्यों कोई पार्टी समर्थन देने लग गई, जबकि कांग्रेस एक ढहता हुआ किला है। उसके पास कोई अपना नेता भी नहीं। ऐसे में यह फॉर्मूला भी व्यर्थ हुआ।

तो हल क्या है विपक्ष के पास

हल ये है कि बदले हुए राजनीतिक हालातों को समझें। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह की राजनीतिक लकीर खींचने की कोशिश की है, वह इस बदले हालात पर चलती दिख रही है। आप ने यह ऐलान किया  है कि 2024 में भाजपा वर्सस आप होगा। इसका अर्थ यह है कि पार्टी अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी हार्ड लैंड में अपनी धमक देने जा रही है। वह एक विकल्प की बात कर रही है, न कि गठबंधन की। वह नीतिगत मामलों में मोदी की घेरेबंदी की बात कह रही है न कि सूट-बूट की सरकार जैसे खाली जुमले। आम आदमी पार्टी का चुनावी पैटर्न भाजपा की तरह ही सकारात्मक, राष्ट्रवादी और सॉफ्ट हिंदुत्व वाला है। ऐसे में अगर आप ढंग से खर्चा, चर्चा कर पाई तो बड़े शेयर हासिल कर सकती है।

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