चेन्नई, 28 दिसंबर (भाषा) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र पर तीसरा प्रक्षेपण पैड विकसित करने की प्रक्रिया में है और वर्तमान में इसके लिए उपयुक्त कंपनियों की तलाश की जा रही है। यह जानकारी एक शीर्ष वैज्ञानिक ने दी है।
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित श्रीहरिकोटा परिसर 175 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह बेंगलुरु स्थित अंतरिक्ष एजेंसी को विभिन्न प्रक्षेपण यानों के जरिये उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाने की सेवा मुहैया कराता रहा है।
श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक और प्रख्यात वैज्ञानिक पद्मकुमार ईएस ने कहा कि अंतरिक्ष में विभिन्न कक्षाओं में 12,000-14,000 किलोग्राम से अधिक वजन वाले बड़े उपग्रहों को स्थापित करने की योजना पर आगे बढ़ने के लिए इसरो को बड़े प्रक्षेपण यानों की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसरो तीसरे प्रक्षेपण पैड की योजना बना रहा है।
पद्मकुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से हालिया बातचीत में कहा, ‘‘हमारी योजना चार साल में तीसरा ‘लॉन्च पैड’ स्थापित कर संचालित करने की है। इसके लिए प्रक्रिया जारी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम खरीद प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं और इस विशाल परियोजना के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए उपयुक्त कंपनियों की पहचान कर रहे हैं।’’
पद्मकुमार ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि एक बार तीसरा प्रक्षेपण पैड चालू हो जाने के बाद, इसका उपयोग 14,000 किलोग्राम से अधिक वजन के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए किया जाएगा, जिन्हें अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यानों (एनजीएलवी) द्वारा कक्षा में ले जाया जाएगा।
इसरो ने 24 दिसंबर को लगभग 6,000 किलोग्राम वजनी अमेरिकी उपग्रह ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 को एलवीएम3-एम6 रॉकेट के जरिये पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित किया था। इसके साथ ही अंतरिक्ष एजेंसी ने पहली बार भारतीय धरती से इतने अधिक वजन का उपग्रह कक्षा में भेजा था।
पद्मकुमार ने बताया कि आगामी शृंखला के प्रक्षेपण यानों के लिए तीसरे प्रक्षेपण पैड की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘तीसरे प्रक्षेपण पैड का उपयोग मानवयुक्त और मानवरहित दोनों प्रकार के अभियानों के लिए किया जाएगा, जबकि पहले और दूसरे प्रक्षेपण पैड का उपयोग पीएसएलवी और जीएसएलवी रॉकेट को प्रक्षेपित करने के लिए किया जाता है।’’
तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के कुलसेकरपट्टिनम में निर्माणाधीन इसरो प्रक्षेपण परिसर के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस सुविधा का उपयोग लघु उपग्रह प्रक्षेपण यानों (एसएसएलवी) को प्रक्षेपण करने के लिए किया जाएगा, जो उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थापित कर सकते हैं।
पद्मकुमार ने कहा, ‘‘इन उपग्रहों का वजन लगभग 500 किलोग्राम हो सकता है और इन्हें निम्न-स्तरीय विद्युत क्षेत्र (एलईओ) में स्थापित किया जा सकता है। ऐसे मिशनों के लिए, हम उस (कुलसेकरपट्टिनम) सुविधा का उपयोग करेंगे।’’
इसरो वर्तमान में तीन तरह के प्रक्षेपण यानों ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) और लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (एलवीएम3) का इस्तेमाल करता है। एलवीएम को पूर्व में भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-3 नाम से जाना जाता था।
इसरो के मुताबिक, अंतरिक्ष एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सतीश धवन की स्मृति में पांच सितंबर, 2002 को इस अंतरिक्ष केंद्र का नाम बदलकर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) कर दिया गया था।
इस अंतरिक्ष केंद्र का परिचालन अक्टूबर 1971 में ‘रोहिणी-125’ रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ शुरू हुआ। तब से, अंतरिक्ष एजेंसी की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए यहां की सुविधाओं का धीरे-धीरे विस्तार किया गया है।
भाषा धीरज दिलीप
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