संघ-भाजपा के पांच कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास, JDU कार्यकर्ता की हत्या का मामला

Five RSS-BJP workers sentenced to life imprisonment: केरल में जदयू कार्यकर्ता की हत्या के लिए संघ-भाजपा के पांच कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास

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  • Publish Date - April 8, 2025 / 10:30 PM IST,
    Updated On - April 8, 2025 / 10:53 PM IST

5 RSS-BJP workers sentenced to life imprisonment, image source: ibc24

HIGHLIGHTS
  • जदयू के एक पदाधिकारी की 2015 में हुई हत्या
  • उच्च न्यायालय ने बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया 
  • प्रत्येक पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया

कोच्चि: 5 RSS-BJP workers sentenced to life imprisonment, केरल उच्च न्यायालय ने त्रिशूर जिले के पझुविल में जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के एक पदाधिकारी की 2015 में हुई हत्या के सिलसिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भाजपा के पांच कार्यकर्ताओं को बरी करने के फैसले को मंगलवार को पलट दिया तथा उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

न्यायमूर्ति पी.बी. सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति जोबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने कहा कि अपराध में शामिल पांच आरोपियों को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी करने का सत्र अदालत का फैसला ‘‘तथ्यात्मक साक्ष्यों की अनदेखी किये जाने तथा अप्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने’’ के कारण विकृत है।

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पीठ ने यह भी कहा कि गंभीर अपराधों में दोषी व्यक्तियों को तकनीकी या कमजोर आधार पर बरी करने से आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली की नींव ही खत्म हो जाएगी। यह प्रणाली सामाजिक व्यवस्था के संरक्षण के साथ व्यक्तिगत अधिकारों को संतुलित करने का प्रयास करती है।

इसमें कहा गया है, ‘‘ऐसे फैसले न केवल न्याय के संरक्षक के रूप में न्यायालयों के प्रति जनता के भरोसे को हिला देते हैं, बल्कि समाज को न्यायालयों से मिलने वाले संरक्षण से भी वंचित कर देते हैं। इस तरह बरी किये जाने से एक खतरनाक भ्रामक संदेश भी जाएगा, जिससे यह संकेत मिलेगा कि गंभीर अपराधों के लिए जिम्मेदार लोग न्याय से बच सकते हैं। ऐसा होने पर अराजकता का माहौल पैदा होगा।”

सत्र अदालत ने मामले में सभी 10 आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद राज्य सरकार तथा पीड़ित की विधवा ने उच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील की थी।

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उच्च न्यायालय ने बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया

उच्च न्यायालय ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपराध में शामिल पांच मुख्य आरोपियों- ऋषिकेश, निजिन उर्फ ​​कुंजप्पू, प्रशांत उर्फ ​​कोचू, रसंत और ब्रशनेव को बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया और उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत दोषी ठहराया। पीठ ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उनमें से प्रत्येक पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

चूंकि दूसरे और पांचवें आरोपी पहले से ही दो अलग-अलग मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे, इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 467(2) का लाभ दिया, जिसमें प्रावधान है कि बाद की सजा पिछली सजा के साथ-साथ चलेगी।

पीठ ने मामले में अन्य पांच आरोपियों को बरी करने के फैसले को भी बरकरार रखा और कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ उकसावे और सबूत नष्ट करने के आरोपों को साबित करने में असमर्थ रहा। पीड़ित दीपक जनता दल (यूनाइटेड) का पदाधिकारी था और पझुविल सेंटर में राशन की दुकान चलाता था।

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1. यह मामला किस हत्या से संबंधित है?

यह मामला 2015 में त्रिशूर जिले के पझुविल में जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के एक पदाधिकारी दीपक की हत्या से संबंधित है। दीपक पझुविल सेंटर में राशन की दुकान चलाते थे और उनकी हत्या के बाद यह मामला सामने आया।

2. कोच्चि उच्च न्यायालय का फैसला क्या था?

कोच्चि उच्च न्यायालय ने त्रिशूर जिले के पझुविल में 2015 में हुई हत्या के सिलसिले में 5 RSS-BJP कार्यकर्ताओं को बरी करने के सत्र अदालत के फैसले को पलटते हुए उन्हें हत्या का दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही, प्रत्येक पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

3. सत्र अदालत ने क्या फैसला दिया था?

सत्र अदालत ने इस मामले में सभी 10 आरोपियों को बरी कर दिया था। लेकिन उच्च न्यायालय ने इस फैसले को खारिज कर दिया और पांच मुख्य आरोपियों को दोषी ठहराया।

4. उच्च न्यायालय ने आरोपियों के खिलाफ क्या निर्णय लिया?

उच्च न्यायालय ने पांच मुख्य आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 34 (सामान्य इरादा) के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके अलावा, उनमें से प्रत्येक पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

5. क्या दोषी पहले से किसी अन्य मामले में सजा काट रहे थे?

हां, मामले के दूसरे और पांचवें आरोपी पहले से ही दो अलग-अलग मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे, इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 467(2) का लाभ दिया, जिसमें प्रावधान है कि बाद की सजा पिछली सजा के साथ-साथ चलेगी।