कोलकाता, 18 दिसंबर (भाषा) कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के सदन में कथित ‘मिनी पाकिस्तान’ टिप्पणी को लेकर हुई तीखी बहस के कारण बृहस्पतिवार को अफरा-तफरी का माहौल हो गया और महापौर फिरहाद हकीम ने भारतीय जनता पार्टी को सबूत पेश करने की चुनौती दी तथा आरोप साबित होने पर इस्तीफा देने व राजनीति छोड़ने का संकल्प जताया।
यह हंगामा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उस प्रस्ताव पर बहस के दौरान हुआ, जिसमे रवींद्रनाथ टैगोर और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर ‘सांस्कृतिक हमले’ की निंदा की गई थी और ‘वंदे मातरम’ के नारे पर किसी भी प्रकार की रोक का विरोध किया गया था।
प्रस्ताव पेश करते हुए तृणमूल पार्षद अरूप चक्रवर्ती ने सदस्यों से बंगाल की सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करने के प्रयासों के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया।
प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा पार्षद सजल घोष ने सत्ताधारी पार्टी और महापौर पर तीखा हमला बोला जिसपर सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी गुस्से में प्रतिक्रिया व्यक्त की।
अंतिम वक्ता के रूप में हकीम ने पलटवार किया और इतिहास का हवाला देते हुए तर्क दिया कि सांप्रदायिक राजनीति की जड़ें अन्य जगहों पर भी गहरी हैं।
हकीम ने कहा, ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी फजलुल हक की सरकार में शामिल हुए थे। पाकिस्तान की मांग करने वालों को हिंदू महासभा का समर्थन प्राप्त था।’ विपक्षी भाजपा ने इसपर कड़ा विरोध जताया।
इसके बाद घोष ने हस्तक्षेप करते हुए आरोप लगाया कि महापौर ने पहले कोलकाता के एक हिस्से को ‘मिनी पाकिस्तान’ बताया था।
इस दावे के सामने आते ही हंगामा मच गया और दोनों पक्षों के सदस्य नारे लगाने व एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगे।
हकीम ने अपनी सीट से उठकर विपक्षी बेंच की ओर इशारा किया और एक नाटकीय चुनौती पेश की।
उन्होंने शोरगुल के बीच चिल्लाकर कहा, ‘अगर आप कहीं भी एक भी बाइट दिखा सकते हैं जहां मैंने ‘मिनी पाकिस्तान’ शब्द का उच्चारण किया हो तो मैं इस्तीफा दे दूंगा और चला जाऊंगा।’
उन्होंने कहा, ‘मैं मुसलमान हूं। मेरा देश भारत है। पाकिस्तान मेरा दुश्मन है।’
सदन के बाहर हकीम ने एक संवाददाता सम्मेलन में अपनी चुनौती को दोहराया, जिससे राजनीतिक दांव और भी तीखे हो गए।
उन्होंने कहा, ‘अगर आरोप साबित हो जाते हैं तो मैं न केवल महापौर पद से इस्तीफा दूंगा बल्कि राजनीति भी छोड़ दूंगा।’ उन्होंने इस आरोप को व्यक्तिगत रूप से आहत करने वाला और ‘सांप्रदायिक राजनीति’ का परिणाम बताया।
हकीम ने कहा, ‘बंगाल में पहले इस तरह की सांप्रदायिक राजनीति नहीं थी। यह ज्यादा समय तक नहीं चलेगी। मैं अल्पसंख्यक हूं या बहुसंख्यक, यह मायने नहीं रखता। हमारी पहचान भारतीय है।’
भाषा शुभम रंजन
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