लोकसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने न्यायपालिका को दलालों से मुक्त कराने पर जोर दिया

लोकसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने न्यायपालिका को दलालों से मुक्त कराने पर जोर दिया

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  • Publish Date - December 4, 2023 / 05:25 PM IST,
    Updated On - December 4, 2023 / 05:25 PM IST

नयी दिल्ली, चार दिसम्बर (भाषा) लोकसभा में सोमवार को विभिन्न दलों के सदस्यों ने न्यायपालिका को दलालों से पूरी तरह मुक्त करने की जरूरत बताई।

कांग्रेस ने जहां इस संबंध में ‘बड़ी मछलियों’ को पकड़ने के लिए आवश्यक प्रावधान करने पर जोर दिया, वहीं भाजपा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में न्यायपालिका को ‘स्वच्छ’ बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

हालांकि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और द्रमुक जैसे दलों ने इस विधेयक को वापस लिये जाने और इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई।

कांग्रेस सांसद कार्ति चिदम्बरम ने अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2023 पर लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि छोटी अदालतों में छोटे-मोटे दलालों के खिलाफ पहल करने के साथ-साथ केंद्र को ‘बड़ी मछलियों’ को पकड़ने के लिए प्रावधान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस विधेयक के समर्थन में है, लेकिन जटिल विधिक प्रक्रिया और सामाजिक असमानता के कारण दलाल पैदा होते हैं।

केंद्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने अपनी उपयोगिता खो चुके ‘सभी अप्रचलित कानूनों या स्वतंत्रता-पूर्व अधिनियमों’ को निरस्त करने के केंद्र सरकार के प्रयास के आलोक में लोकसभा में अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक विचार एवं पारित किये जाने के लिए पेश किया।

यह विधेयक राज्य सभा से पहले ही पारित हो चुका है।

सरकार ने भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) के परामर्श से लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को निरस्त करने और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करने का निर्णय लिया है।

विधेयक का उद्देश्य ‘अनावश्यक अधिनियमों’ की संख्या कम करने के लिए अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में ‘लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879’ की धारा 36 के प्रावधानों को शामिल करना है।

यह धारा अदालतों में दलालों की सूची तैयार करने और प्रकाशित करने की शक्ति प्रदान करती है।

भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि सरकार अपना औचित्य खो चुके ब्रिटिशकालीन कानूनों को निरस्त करने के प्रति वचनबद्ध है।

पाल ने कहा कि अदालतों में दलालों के चंगुल में सबसे अधिक गांव के अनपढ़, अशिक्षित लोग फंसते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जब प्रधानमंत्री ने ‘स्वच्छता’ अभियान चलाया है तो न्यायपालिका में भी इस तरह की स्वच्छता बनाये रखने की जरूरत है।’’

उन्होंने इस विधेयक को अदालत परिसरों में दलालों की पहचान करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम करार दिया।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के ही पी. पी. चौधरी ने कहा कि न्यायपालिका में दलालों की मौजूदगी का नुकसान समाज के अंतिम छोर के लोग उठाते हैं।

राकांपा की सदस्य सुप्रिया सुले ने विधेयक वापस लेने, स्थायी समिति को समीक्षा के लिए भेजने तथा एक विस्तारित विधेयक पेश करने की सरकार से मांग की।

सुले ने कहा कि भ्रष्टाचार में दोनों पक्षों को भ्रष्ट आचरण के लिए आरोपी बनाया जताया है, लेकिन इस विधेयक में केवल दलाल को ही आरोपी बनाये जाने का प्रावधान है। उन्होंने सवाल किया कि आखिर इसमें दोनों पक्षों को क्यों नहीं घेरा जाना चाहिए।

उन्होंने न्यायपालिका में दलाल संस्कृति से बचने के लिए केंद्र को सामाजिक कार्यक्रम लाने और नये वकीलों को आर्थिक सहायता की व्यवस्था करने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार नये वकीलों को 5,000 रुपये प्रतिमाह मानदेय दे रही है, जबकि केरल में यह राशि 2,000 रुपये प्रतिमाह है।

द्रमुक सांसद ए. राजा ने कहा कि इस विधेयक से संसदीय लोकतंत्र का मजाक बनाया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद से संसद का दुरुपयोग किया जा रहा है और राज्य के अनेक विषयों पर संसद में चर्चा की जा रही है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने कानून में औपनिवेशिक प्रावधान को हटाने की बात कही है, लेकिन उसी प्रावधान को नये तरीके से शामिल किया गया है। राजा ने कहा कि इसका क्या औचित्य है?

राजा ने कहा कि विधेयक का मसौदा सही से तैयार नहीं किया गया है और सरकार को इस विधेयक पर पुनर्विचार करना चाहिए।

जारी भाषा वैभव सुरेश वैभव सुरेश

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