भारत के अंतरिक्ष मिशन का दस्तावेजीकरण करते हैं एनसीईआरटी मॉड्यूल

भारत के अंतरिक्ष मिशन का दस्तावेजीकरण करते हैं एनसीईआरटी मॉड्यूल

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  • Publish Date - August 23, 2025 / 09:23 PM IST,
    Updated On - August 23, 2025 / 09:23 PM IST

नयी दिल्ली, 23 अगस्त (भाषा) भारत में 1960 के दशक में साइकिल और बैलगाड़ी पर रॉकेट ले जाने से लेकर चंद्रयान और गगनयान जैसे ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियानों तक, देश का वैश्विक अंतरिक्ष शक्तियों के बीच उदय अब एनसीईआरटी के विशेष मॉड्यूल का हिस्सा है।

दो मॉड्यूल में ‘भारत: एक उभरती हुई अंतरिक्ष शक्ति’ शीर्षक से इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि किस प्रकार 1962 में विक्रम साराभाई के नेतृत्व में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (आईएनसीओएसपीएआर) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का रूप लिया, जिसने ऐसी उपलब्धियां हासिल कीं, जिनके कारण भारत को अंतरिक्ष में अग्रणी देशों में स्थान मिला।

मॉड्यूल में लिखा है, ‘‘भारत का पहला रॉकेट इतना छोटा और हल्का था कि उसके पुर्जों को साइकिल और बैलगाड़ियों पर ले जाया गया। वैज्ञानिकों ने इस काम के लिए साइकिल और बैलगाड़ियों को चुना। कार और ट्रक जैसे मोटर चालित वाहन विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं जो नाजुक रॉकेट उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, साधारण परिवहन के इस्तेमाल से सब कुछ सुरक्षित रहा।’’

इन दो मॉड्यूल में से एक मध्य स्तर के छात्रों के लिए और दूसरा माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए हैं। ये दोनों भारत के अंतरिक्ष यात्रियों, स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा और ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा 1984 में सोवियत मिशन पर अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय बने जबकि ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला जून 2025 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रुकने वाले पहले भारतीय बने।

मॉड्यूल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक उद्धरण भी शामिल है, जिसमें कहा गया है, ‘‘अंतरिक्ष दूर लग सकता है, लेकिन यह हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। यह हमारे आधुनिक संचार का आधार है और दूरस्थ परिवारों को भी आम लोगों से जोड़ता है। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम हमारे पैमाने, गति और कौशल के दृष्टिकोण का एक आदर्श उदाहरण है।’’

मॉड्यूल में कई ऐतिहासिक मिशन सूचीबद्ध किये गए हैं, जैसे चंद्रयान-1 (2008), जिसके माध्यम से चंद्रमा पर पानी के अणुओं की खोज की गई थी; मंगलयान (2013), जिसने भारत को मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला एशियाई देश और अपने पहले प्रयास में सफल होने वाला दुनिया का पहला देश बना दिया; चंद्रयान-2 (2019), जिसका ऑर्बिटर महत्वपूर्ण चंद्र डेटा प्रदान करना जारी रखे हुए है और आदित्य-एल1 (2023), लैग्रेंज पॉइंट-1 पर भारत की पहली सौर वेधशाला जो सूर्य के बाहरी वायुमंडल और सौर तूफानों का अध्ययन करती है।

ये आगामी एनएएसए (राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन)-इसरो निसार उपग्रह के बारे में भी बात करते हैं, जो हर 12 दिनों में एक बार विश्व का सर्वेक्षण करके पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ आवरण और प्राकृतिक आपदाओं पर उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा प्रदान करेगा।

भाषा अमित माधव

माधव