उत्तर बंगाल के जातीय समूहों ने भाजपा सांसद की पृथक केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग खारिज की | North Bengal ethnic groups reject BJP MP's demand to form separate Union Territory

उत्तर बंगाल के जातीय समूहों ने भाजपा सांसद की पृथक केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग खारिज की

उत्तर बंगाल के जातीय समूहों ने भाजपा सांसद की पृथक केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग खारिज की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:55 PM IST, Published Date : June 22, 2021/10:03 am IST

(प्रदीप्ता तापदार)

कोलकाता, 22 जून (भाषा) पिछले कई दशकों में उत्तर बंगाल को पृथक राज्य बनाने को लेकर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कई जातीय समूह ने क्षेत्र के सभी जिलों को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की भाजपा सासंद की विवादित मांग को खारिज कर दिया है और इसे ‘ अवास्तविक’ तथा ‘प्रतिशोधी’ कदम बताया है।

अलीपुरद्वार से भाजपा सांसद जॉन बार्ला ने बंगाल को विभाजित करने की मांग कर राज्य में सियासी बहस छेड़ दी है। हालांकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और अन्य पार्टियों ने कड़ा ऐतराज़ जताया है।

बार्ला की मांग की क्षेत्र के प्रमुख पहचान आधारित समूहों -गोरखा जन मुक्ति मोर्चा(जीजेएम), ग्रेटर कूच बिहार पीपल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) और कामतापुर आंदोलन समर्थकों ने हिमायत नहीं की है। उन्होंने कहा कि यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बेचैनी पैदा करने की एक कोशिश है।

बार्ला ने उत्तर बंगाल के पार्टी नेताओं के साथ बातचीत करते हुए कहा था कि वह इस मामले को संसद के आगामी मानसून सत्र में उठाएंगे। हालांकि उनके नजरिए का जलपाईगुड़ी से भाजपा सांसद जयंत रॉय और अन्य नेताओं ने समर्थन किया है। हालांकि प्रदेश भाजपा ने उनकी इस मांग से दूरी बना ली है कि और कहा कि यह बार्ला की निजी राय है।

पहले इस क्षेत्र में एक स्वायत्त आदिवासी क्षेत्र के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने वाले बार्ला ने कहा कि उत्तर बंगाल की लंबे समय से उपेक्षा की गयी है और टीएमसी के नेतृत्व वाले राज्य से इसे अलग करके ही क्षेत्र में विकास की शुरुआत करने का एकमात्र तरीका हो सकता है।

अपने रुख पर डटे रहे भाजपा सांसद ने कहा, “अतीत में यहां अलग कामतापुरी, ग्रेटर कूचबिहार और गोरखालैंड के लिए आंदोलन होते रहे हैं। इसने मुझे यह मांग उठाने के लिए प्रेरित किया… और सच कहूं, तो उत्तर बंगाल क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षित रहा है। इसे अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना चाहिए।”

तराई-डुआर्स के आदिवासी नेता ने यह भी कहा कि वह और क्षेत्र के अन्य नेता इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेंगे।

उनकी टिप्पणी ने राज्य में सियासी तूफान ला दिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने और सत्तारूढ़ टीएमसी ने इसका कड़ा विरोध किया।

बनर्जी ने कहा, “ हम बंगाल के किसी भी बंटवारे का विरोध करते हैं। हम इसकी कभी इजाजत नहीं देंगे।”

टीएमसी ने भगवा दल को ‘ बंगाल विरोधी’ संगठन बताया जो राज्य का बंटवारा कर मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी हार का बदला लेना चाहती है।

उत्तर बंगाल में आठ जिले हैं जिसमें दार्जिलिंग भी शामिल है जो पश्चिम बंगाल के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां चाय बागान, लकड़ी और पर्यटन उद्योग है।

यह स्थान देश के लिए रणनीतिक रूप से अहम है, क्योंकि यहीं पर सिलीगुड़ी कॉरिडोर है जो मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। इसे आमतौर पर ‘चिकन नेक’ के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र की नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश से सीमा लगती है।

क्षेत्र 1980 की दशक के शुरुआत से पृथक राज्य की मांग को लेकर कई हिंसक आंदोलन का गवाह रहा है। यह आंदोलन गोरखा, राजबंशी, कूच और कामतापुरी समुदायों जैसे जातीय समूह ने चलाए थे।

जीजेएम के महासचिव रोशन गिरी ने बार्ला के मांग को खारिज करते हुए कहा, “उत्तर बंगाल के सभी जिलों को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश या एक अलग राज्य किस उद्देश्य की पूर्ति करेगा? हम अलग गोरखालैंड राज्य चाहते थे। हम 1980 के दशक से इसके लिए लड़ रहे हैं। हमें भाजपा पर भरोसा नहीं है। उन्होंने 2009 से हमें बेवकूफ बनाया है।”

गोरखालैंड की मांग पहली बार 1980 के दशक में की गई थी और सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले जीएनएलएफ ने 1986 में एक हिंसक आंदोलन शुरू किया, जो 43 दिनों तक चला, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।

इस आंदोलन की वजह से 1988 में दार्जिलिंग गोरखा पर्वत परिषद का गठन किया गया। 2011 में टीएमसी के बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के बाद गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) गठित किया गया जिसके प्रमुख जीजेएम सुप्रीमो बिमल गुरुंग बने।

जीजेएम के गुरुंग गुट से जुड़े गिरी ने दावा किया कि भाजपा ‘झूठे वादे’ कर रही है और उनके संगठन को अब बनर्जी पर पूरा भरोसा है क्योंकि उन्होंने स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा किया है। उनके संगठन ने विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी से हाथ मिलाया है।

उनकी हां में हां मिलते हुए जीसीपीए के बंगशी बदन बर्मन ने कहा कि अलग केंद्र शासित प्रदेश राजबंशी के लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग के समान नहीं हैं, जिनकी राज्य की अनुसूचित जाति में सबसे ज्यादा आबादी हैं।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, “ स्वतंत्रता के बाद कूच बिहार रियासत का भारत में विलय हुआ और इसे सी-श्रेणी का राज्य बनाने का वादा किया गया था। लेकिन वह वादा पूरा नहीं हुआ और कूचबिहार रियासत का कुछ हिस्सा असम और पश्चिम बंगाल के बीच बंट गया। इसलिए उत्तर बंगाल को एक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने से बहुत मदद नहीं मिलेगी।”

कामतापुर पीपल्स पार्टी (यूनाइटिड) के अध्यक्ष निखिल रॉय ने कहा कि यह मांग वास्तविक नहीं है और वे क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग का समर्थन नहीं करेंगे।

कांग्रेस सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि ‘ऐसा प्रस्ताव केवल जनता को विभाजित करेंगा और कभी वास्तविकता नहीं बनेंगा, क्योंकि इसे पहले विधानसभा से पारित कराने की जरूरत है।

भाषा

नोमान पवनेश

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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