अब वो हालत नहीं है कि रक्षा मंत्री को सदन में कहना पड़े कि पैसे नहीं हैं: वित्त मंत्री

अब वो हालत नहीं है कि रक्षा मंत्री को सदन में कहना पड़े कि पैसे नहीं हैं: वित्त मंत्री

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  • Publish Date - December 15, 2025 / 08:08 PM IST,
    Updated On - December 15, 2025 / 08:08 PM IST

नयी दिल्ली, 15 दिसंबर (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में ऐसी स्थिति नहीं है कि रक्षा मंत्री को सदन में कहना पड़े कि उनके पास नहीं हैं।

सीतारमण ने सदन में, वर्ष 2025-26 के लिए अनुदानों की अनुपूरक मांगें-प्रथम बैच और संबंधित विनियोग (संख्याक 4) विधेयक, 2025 पर चर्चा का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की।

सीतारमण का इशारा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय रक्षा मंत्री रहे ए.के. एंटनी की ओर था, हालांकि उन्होंने उनका नाम नहीं लिया।

वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में 53 लाख करोड़ रुपये से अधिक रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित किए गए हैं।

उन्होंने दावा किया कि संप्रग शासन के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इन सदन में खड़े होकर कहा था कि मेरे पास पैसे नहीं है, लेकिन मोदी सरकार में ऐसी हालत नहीं है।

इस पर कुछ विपक्षी सदस्यों ने उनसे इस बयान को सत्यापित करने की मांग की।

सीतारमण ने कहा कि वह अपनी बात सदन में मंगलवार को सत्यापित कर देंगी।

हालांकि, बिरला ने नियम 352 का हवाला देते हुए कहा कि इसकी जरूरत नहीं है।

इस दौरान, सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच हल्की नोकझोक भी हुई।

सीतारमण ने कहा कि अनुदान की अनुपूरक मांगें किसी भी सरकार के लिए जरूरी होती हैं।

उनका कहना था कि बतौर वित्त मंत्री उन्होंने अनुपूरक मांगों की संख्या में कमी की है।

सीतारमण ने कहा कि यूरिया और डीएपी की कीमतों में उतार-चढ़ाव के बावजूद सावधानी से इनका प्रबंधन किया गया और वित्त मंत्रालय ने भारतीय किसानों को निराश नहीं किया है।

उन्होंने सवाल किया कि क्या बिना पैसे के आईआईटी बन सकता है?

वित्त मंत्री ने राजस्व की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि इस सरकार के दौरान आईआईटी, एनआईटी और आईआईआईटी तथा आईआईएम की संख्या में बढ़ोतरी की गई है।

उन्होंने विपक्षी सदस्य दीपेंद्र हुड्डा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कहना उचित नहीं है कि शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है।

भाषा

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हक सुभाष

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