नरेगा संघर्ष मोर्चा ने सरकार को ‘गहराते संकट’ के प्रति आगाह किया

नरेगा संघर्ष मोर्चा ने सरकार को ‘गहराते संकट’ के प्रति आगाह किया

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  • Publish Date - September 6, 2025 / 10:35 PM IST,
    Updated On - September 6, 2025 / 10:35 PM IST

नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) एक अधिकार समूह ने केंद्र सरकार को गहराते संकट के प्रति आगाह करते हुए शनिवार को कहा कि बजट कटौती ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को पंगु बना दिया है।

मनरेगा योजना पर काम करने वाले यूनियन और संगठनों के समूह नरेगा संघर्ष मोर्चा (एनएसएम) ने यहां संवाददाता सम्मेलन के बाद जारी बयान में कहा कि केंद्र सरकार “ग्रामीण श्रमिकों के अधिकारों की लगातार उपेक्षा कर रही है”, जिसके परिणामस्वरूप इस योजना पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

एनएसएम ने केंद्र सरकार पर मनरेगा के लिए कम धन मुहैया कराने का आरोप लगाया।

उसने कहा कि मजदूरी की मांग को दबाने और डिजिटल नियंत्रण लागू करने से एक विकेंद्रीकृत, मांग-संचालित गारंटी योजना कठोर ‘टॉप-डाउन ब्यूरोक्रेसी’ में बदल जाएगी।

‘टॉप-डाउन ब्यूरोक्रेसी’ का आशय एक ऐसे संगठनात्मक मॉडल से है, जहां निर्णय लेने और निर्देश देने का अधिकार वरिष्ठ नेतृत्व के पास होता है और यह (निर्णय और निर्देश) एक पदानुक्रमित संरचना के माध्यम से निचले स्तर के कर्मचारियों तक पहुंचता है, जो मुख्य रूप से इन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

अर्थशास्त्री राजेंद्रन नारायणन ने कहा, “विश्व बैंक के शोधकर्ताओं ने कहा था कि योजना को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की कम से कम 1.6 प्रतिशत राशि का आवंटन किया जाना चाहिए। अभी कितना आवंटन किया गया है? यह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.3 प्रतिशत है। आवंटन केवल कोविड वर्ष में थोड़ा अधिक हुआ था, जो सकल घरेलू उत्पाद का 0.58 प्रतिशत था।”

एनएसएम ने इस बात पर जोर दिया कि बजट कटौती ने योजना को पंगु बना दिया है।

उसने कहा, “ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि अगस्त 2025 तक, वार्षिक बजट का 60 प्रतिशत हिस्सा यानी 51,521 करोड़ रुपये पहले ही खर्च हो चुके होंगे। लगातार कम वित्त पोषण के कारण भुगतान में देरी हो रही है और काम की मांग कम हो रही है, जिससे श्रमिकों को काम छोड़ना पड़ रहा है।”

भाषा पारुल दिलीप

दिलीप