कन्नूर (केरल), 20 सितंबर (भाषा) केरल के देवस्वम मंत्री के राधाकृष्णन द्वारा छुआछूत के कथित आरोपों का जवाब देते हुए पांरपरिक पुजारियों के संगठन ने बुधवार को कहा कि मंत्री ने अनुष्ठानों को समझने में ‘भूल’ की है और किसी के साथ मंदिर में भेदभाव नहीं किया जाता है।
अखिल केरल तंत्री समाजम की राज्य समिति ने कहा कि पुजारी ‘देव पूजा’ और अनुष्ठान पूरा होने से पहले किसी को स्पर्श नहीं करते फिर चाहे वह ब्राह्मण हो या गैर ब्राह्मण।
संगठन ने आश्चर्य जताया कि इस विवाद को हवा देने के पीछे कोई ‘खराब मंशा’ तो नहीं है क्योंकि जिस घटना का जिक्र किया गया है वह ‘‘तकनीकी रूप से आठ महीने पहले की है। पुजारियों के संगठन ने आरोप लगाया कि ‘निर्दोष कृत्य’ को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
समाजम पारंपरिक उच्च पुजारियों का एक संघ है जो केरल के अधिकांश मंदिरों में प्रचलित अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को संपन्न कराता है।
संगठन ने फेसबुक पोस्ट पर कहा कि विचाराधीन घटना में, ‘मेलशांति’ (मुख्य पुजारी) – जो पूजा कर रहे थे – को अंतिम क्षण में आने और दीपक जलाने के लिए कहा गया क्योंकि मंदिर के तंत्री (पारंपरिक उच्च पुजारी) अनुपस्थित थे।
संगठन ने कहा कि दीपक जलाने के बाद वह पूजा पूरी करने के लिए वापस गए और इसे मंत्री ने छुआछूत समझ लिया और उन्होंने मौके पर ही नाराजगी व्यक्त की।
संगठन ने कहा कि केरल में, मंदिरों में स्वच्छता पूरी तरह से आध्यात्मिक थी और दावा किया कि यह जाति-आधारित भेदभाव नहीं था।
समाजम ने कहा कि मालाबार देवस्वम बोर्ड के तहत एक मंदिर में काम करने वाले दो पुजारियों के खिलाफ केवल उनकी जाति के आधार पर गंभीर मामला दर्ज किया गया।
इसमें आगे दावा किया गया कि वास्तविकता को नजरअंदाज करते हुए कुछ लोग मंत्री के बयान के आधार पर मंदिर के ‘मेलशांति’ और उनके समुदाय का अपमान कर रहे हैं।
इससे पहले केरल देवस्वम मामलों के मंत्री के.राधाकृष्णन ने दावा किया था उन्होंने मंदिर में उनके साथ हुए जातिगत भेदभाव की घटना का सार्वजनिक रूप से उल्लेख किया क्योंकि वह राज्य के प्रगतिशील समाज को आगाह करना चाहते थे कि जातिवाद की बुराई ‘‘ एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश कर रही है।’’
केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केंद्रीय समिति के सदस्य राधाकृष्णन ने आरोप लगाया कि भारत में हाल के समय में अनुसूचित जाति के लोगों पर हमले बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं इस देश में दलितों के अस्तित्व पर सवाल उठाती हैं।
राधाकृष्णन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ मैंने अपने अनुभवों का हवाला चेतावनी के तौर पर दिया ताकि ऐसे जातिवादी विचार केरल की मनोवृत्ति में ना आ सके। सामाजिक प्रगति की रक्षा की जा सके जिसे हमने अबतक हासिल किया है।’’
स्वयं अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले राधाकृष्णन ने कहा कि जातिवादी विचारों के अवशेष अब भी कुछ लोगों के दिमाग में हैं, लेकिन समाजिक प्रतिक्रिया के डर से वे उसे जाहिर नहीं करते।
मंत्री ने कहा, ‘‘अगर ऐसी सामाजिक प्रणाली केरल में फली-फूली तो जल्द ही हम वह खो देंगे जो अबतक हमने प्रगतिशील आंदोलन और वाम आंदोलन से प्राप्त किया है।’’
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जातीय आधार पर अत्याचार की खबरों ने उन्हें मंत्री के तौर पर हुए अनुभवों को याद करने के लिए प्रेरित किया।
राधाकृष्णन ने सोमवार को आरोप लगाया कि मंदिर के दो पुजारियों ने दीया मुझे हाथ में देने के बजाय जमीन पर रख दिया और वहां से मुझे उठाने को कहा। उन्होंने कहा कि वह मंदिर के उद्घाटन पर गए थे और पारंपरिक रूप से उद्घाटन के तौर पर दीप प्रज्वलन होता है।
मंत्री ने आरोप लगाया कि मंदिर के दो पुजारियों ने खुद मुख्य दीपक को छोटे दीपक से जलाया और उसके बाद छोटे दीपक को उनकी बारी आने पर जमीन पर रख दिया ।
भाषा धीरज संतोष
संतोष