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नयी दिल्ली, 31 जुलाई (भाषा) ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बृहस्पतिवार को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने पर उम्मीद जताई कि केंद्र इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगा।
मुंबई की एक विशेष अदालत ने मालेगांव विस्फोट मामले के सात आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी कर दिया, जिनमें पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं। सितंबर 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास हुए विस्फोटों में छह लोग मारे गए थे और 101 घायल हुए थे।
ओवैसी ने संसद परिसर में पत्रकारों से कहा, ‘‘क्या मोदी सरकार और महाराष्ट्र सरकार इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगी? या वे आतंकवाद पर अपना पाखंड जारी रखेंगे?’’
उन्होंने कहा कि विस्फोटों के 17 साल बाद आरोपियों को बरी किया जाना जांच पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पहले हेमंत करकरे के नेतृत्व में मुंबई एटीएस ने मामले की जांच की और फिर यह एनआईए के पास गया। जांच में भारी खामियां थीं। एनआईए द्वारा सैन्य-ग्रेड के आरडीएक्स के इस्तेमाल की बात कहे जाने के बावजूद, यह तय नहीं किया गया है कि वह आरडीएक्स कहां से आया था।’’
ओवैसी ने 2006 के मालेगांव हमले और समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट सहित उक्त घटना से पहले हुए विस्फोटों का भी जिक्र किया और तर्क दिया कि कई मामलों में न्याय नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा, ‘‘समझौता विस्फोट किसने किया? मक्का मस्जिद, अजमेर और मुंबई ट्रेन विस्फोटों के पीछे कौन था? वर्ष 2006 के मालेगांव मामले में भी मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें बेरहमी से प्रताड़ित किया गया। बाद में उन्हें बरी कर दिया गया। तो असल में यह किसने किया?’’
एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा, ‘‘आतंकवाद के प्रति दो दृष्टिकोण नहीं हो सकते। पीड़ितों के परिवारों को कोई राहत नहीं मिली है, चाहे वह मालेगांव हो, समझौता एक्सप्रेस हो, मुंबई हो या मक्का मस्जिद।’’
भाषा वैभव सुरेश
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