राजनीतिक शक्ति के लिए विमर्श गढ़ने के सामर्थ्य की आवश्यकता होती है : जेएनयू की कुलपति

राजनीतिक शक्ति के लिए विमर्श गढ़ने के सामर्थ्य की आवश्यकता होती है : जेएनयू की कुलपति

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  • Publish Date - July 10, 2025 / 05:23 PM IST,
    Updated On - July 10, 2025 / 05:23 PM IST

नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने राष्ट्रीय चेतना को आकार देने में शिक्षा जगत की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि विमर्श (गढ़ने के) सामर्थ्य के बिना राजनीतिक शक्ति कायम नहीं रह सकती।

उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक शक्ति के लिए विमर्श (गढ़ने के) सामर्थ्य की आवश्यकता होती है। इसलिए, बुद्धिजीवी बहुत महत्वपूर्ण हैं और उच्च शिक्षा संस्थानों का यह कर्तव्य है कि वे ऐसा करें।’’

वह विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) पर पहले वार्षिक शैक्षणिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बोल रही थीं।

कुलपति ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि इस पहले सम्मेलन से अभूतपूर्व शोधपत्र प्रकाशित होंगे और ये भारतीय ज्ञान प्रणालियों के किसी भी व्यवस्थित अध्ययन का आधार बनेंगे। यह प्रधानमंत्री के विकसित भारत के सपने को साकार करने में भी मदद करेगा।’’

पंडित ने कहा कि जेएनयू हमेशा समावेशी उत्कृष्टता में आगे रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय को एक ऐसे स्थान के रूप में वर्णित किया, जहां ‘‘हम समता और समानता के साथ उत्कृष्टता, समावेश और अखंडता के साथ नवाचार लाते हैं।’’

दस से 12 जुलाई तक आयोजित होने वाले इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य दर्शन, विज्ञान और कला के क्षेत्रों में भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों का अन्वेषण करना है। इसमें पारंपरिक ज्ञान को समकालीन शिक्षा और नीतिगत ढांचों में एकीकृत करने पर केंद्रित अकादमिक परिचर्चाएं शामिल हैं।

कार्यक्रम का उद्घाटन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया, जिन्होंने कहा कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय के साथ-साथ उसकी बौद्धिक और सांस्कृतिक नींव का भी विकास होना चाहिए।

उन्होंने स्वतंत्रता के बाद स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों की उपेक्षा और पश्चिमी सिद्धांतों के प्रभुत्व की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘किसी राष्ट्र की शक्ति उसके विचारों की मौलिकता और उसके मूल्यों के शाश्वत रहने में निहित होती है।’’

कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय पत्तन, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने भारतीय ज्ञान परंपराओं की बढ़ती वैश्विक मान्यता को रेखांकित किया।

सोनोवाल ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) पर पहले वार्षिक सम्मेलन के लिए जेएनयू में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ शामिल होकर अभिभूत हूं। श्री अरबिंदो ने कहा था, ‘अंतर्ज्ञान हमारे ऋषियों का सर्वोच्च सभ्यतागत ज्ञान था।’ आज, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उस विरासत को पुनर्जीवित किया जा रहा है।’’

भाषा सुभाष मनीषा

मनीषा

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