नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत दायित्व विश्वसनीय साक्ष्यों के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिए, और केवल सहानुभूति के आधार पर कानून के सिद्धांतों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
ये टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ की ने की, जिसने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज कर दिया।
उच्च न्यायालय ने शिवमोगा स्थित मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए एक आदेश की पुष्टि की थी, जिसने 2013 में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए दो व्यक्तियों के कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा दायर दावा याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘हम मृतकों के परिवारों को हुए इस दुखद नुकसान के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। जवानी में अपनों को खोने का दर्द असहनीय है। हालांकि, केवल सहानुभूति के आधार पर कानून के सिद्धांतों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘मोटर वाहन अधिनियम के तहत दायित्व विश्वसनीय साक्ष्यों के माध्यम से सिद्ध किया जाना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि साक्ष्यों की गहन जांच के बाद, उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरण ने पाया कि अपीलकर्ता दुर्घटना में शामिल वाहन की संलिप्तता साबित करने में विफल रहे हैं।
यह मामला अगस्त 2013 में दुर्घटना में दो व्यक्तियों की मौत हो जाने से संबंधित है, जब उनकी मोटरसाइकिल को कथित तौर पर तेज गति वाली एक कैंटर लॉरी ने टक्कर मार दी थी।
भाषा शफीक रंजन
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