नयी दिल्ली, सात मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यह आवश्यक है कि प्रख्यात एवं सार्वजनिक हस्तियां किसी उपभोक्ता उत्पाद के विज्ञापन के दौरान ‘‘जिम्मेदाराना’’ व्यवहार करें क्योंकि भ्रामक विज्ञापन जारी करने के लिए विज्ञापनदाताओं के साथ-साथ वे भी समान रूप से जिम्मेदार हैं।
भ्रामक विज्ञापनों पर कार्रवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि किसी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, ‘केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम,1994’ के अनुसार विज्ञापनदाताओं से एक स्व-घोषणा पत्र हासिल किया जाए।
वर्ष 1994 के इस कानून का नियम-सात विज्ञापन संहिता का प्रावधान करता है, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापन देश के कानूनों के अनुरूप बनाये जाने चाहिए।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानउल्लाह की पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि विज्ञापनदाता, विज्ञापन एजेंसियां और उत्पादों का समर्थन करने वाली हस्तियां झूठे एवं भ्रामक विज्ञापन जारी करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।’’
पीठ ने कहा, ‘‘…मशहूर हस्तियों, प्रभावशाली व्यक्तियों और सार्वजनिक हस्तियों द्वारा विज्ञापन करने से उत्पादों के प्रचार-प्रसार में काफी मदद मिलती है और विज्ञापन के दौरान किसी भी उत्पाद का समर्थन करते समय और उसकी जिम्मेदारी लेते समय जिम्मेदारी के साथ काम करना उनके लिए जरूरी है…।”
न्यायालय ने कहा कि विज्ञापनदाताओं द्वारा सौंपे गए स्व-घोषणा पत्र को ‘ब्रॉडकास्ट सेवा’ पोर्टल पर अपलोड किया जाए, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों के संबंध में, पीठ ने कहा कि मंत्रालय चार सप्ताह के भीतर एक पोर्टल बनाए और विज्ञापनदाताओं को कोई भी विज्ञापन जारी करने से पहले स्व-घोषणा पत्र दाखिल करना होगा।
पीठ ने कहा कि स्व-घोषणा पत्र दाखिल करने का प्रमाण विज्ञापनदाता को प्रसारणकर्ता या प्रकाशक को उपलब्ध कराना होगा।
न्यायालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय से खाद्य उत्पादों से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों पर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा 2018 के बाद से प्राप्त शिकायतों के संबंध में एक हलफनामा दाखिल करने तथा उन पर की गई या प्रस्तावित कार्रवाई का विवरण दाखिल करने को कहा।
शीर्ष अदालत पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही है।
मामले में अगली सुनवाई 14 मई को होगी।
न्यायालय ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (आईएमए) द्वारा 2022 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पतंजलि और योग गुरु रामदेव ने कोविड टीकाकरण और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों को बदनाम करने का अभियान चलाया।
पीठ ने पतंजलि के उत्पादों के बारे में भ्रामक विज्ञापनों की आलोचना की है।
भाषा सुभाष अविनाश
अविनाश