धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति का दर्जा बनाये रखना धोखाधड़ी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति का दर्जा बनाये रखना धोखाधड़ी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
प्रयागराज, दो दिसंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण के बाद अनुसूचित जाति का दर्जा बनाए रखने को ‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’ के समान करार दिया।
अदालत ने उत्तर प्रदेश के संपूर्ण प्रशासनिक तंत्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि धर्मांतरण के बाद ईसाई बनने वाले व्यक्ति अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले लाभ को उठाना जारी ना रखने पाये।
उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव (अल्पसंख्यक कल्याण विभाग) को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया कि अल्पसंख्यक दर्जा और अनुसूचित जाति के दर्जे के बीच अंतर को सख्ती से लागू किया जाए।
अदालत ने साथ ही प्रदेश में सभी जिलाधिकारियों के लिए ऐसे मामलों की पहचान कर उनकी रोकथाम के लिए कानून के मुताबिक कार्रवाई करने के लिए चार महीने की समय सीमा निर्धारित की।
न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि ने जितेंद्र साहनी नाम के व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्देश दिया।
साहनी पर हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाने और वैमनस्य को बढ़ावा देने का आरोप है।
साहनी ने इस आधार पर आरोप पत्र रद्द करने की मांग की थी कि उसने ईसा मसीह के उपदेशों का अपनी खुद की जमीन पर प्रचार करने के लिए संबंधित अधिकारियों से अनुमति मांगी थी और उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है।
अदालत ने 21 नवंबर को सुनवाई के दौरान याचिका के समर्थन में दाखिल हलफनामा पर गौर करते हुए पाया कि याचिकाकर्ता ने हलफनामा में अपना धर्म हिंदू लिखा है, जबकि वह ईसाई धर्म अपना चुका है।
अदालत को बताया गया कि धर्मांतरण से पूर्व याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति समुदाय से था और हलफनामा में उसने अपना धर्म हिंदू लिखा है।
भाषा सं राजेंद्र जितेंद्र
जितेंद्र

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