Samvidhan Sadan Of India: पुराने संसद का हुआ नामकरण.. अब इस नाम से जाना जाएगा देश का पुराना संसद, देखें आदेश..

Samvidhan Sadan Of India पुराने संसद का हुआ नामकरण, अब इस नाम से जाना जाएगा देश का पुराना संसद, देखें आदेश..

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  • Publish Date - September 19, 2023 / 09:12 PM IST,
    Updated On - September 19, 2023 / 09:16 PM IST

Samvidhan Sadan Of India

नई दिल्ली : नए संसद भवन में आअज गणेशा चतुर्थी के पर्व पर कामकाज चालू हो चुका है। इस मौके पर खुद प्रधानमंत्री मोदी संविधान की प्रतियां लेकर नए संसद भवन पहुंचे। इस दौरान सत्तापक्ष के सांसद भी उनके साथ थे। नए संसद में कामकाज के पहले ही दिन मोदी सरकार ने ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल संसद के पटल पर रखा जिस पर अब बहस भी होगी। नए संसद भवन के लोकार्पण के मकसद से ही सरकार ने पांच दिनों के लिए संसद के विशेष सत्र का आयोजन किया है, जिसमें सभी दलों की सहमति भी है।

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वही इन सबके बीच यह सवाल उठ रहे थे कि नए भवन में कामकाज शुरू पुराने संसद भवन का क्या होगा। हालाँकि सरकार ने अब तक इस पर कोई आधिकारिक या ठोस फैसला नहीं लिया लेकिन पुराने संसद का नया नामकरण जरूर कर दिया गया है।

सरकार की तरफ से इस बारे में ऐलान करते हुए बताया गया है कि पुराने संसद भवन को अब संविधान सदन के नाम से जाना जाएगा। एक्स (पहले ट्विटर) पर इसकी जानकारी न्यूज एजेंसी एएनआई ने प्रेषित की है।

कल सोनिया गांधी लेंगी बहस में हिस्सा

लम्बे वक़्त के बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी देश के नए संसद में गरजेंगी। दरअसल सोनिया गांधी महिला आरक्षण बिल पर होने वाली बहस में कांग्रेस की तरफ से बतौर मुख्य वक्ता हिस्सा लेंगी। सोनिया गांधी काफी समय बाद किसी मुद्दे पर सरकार के खिलाफ संसद में बहस करेंगी। न्यूज एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से इसकी पुष्टि की है।

उमा भारती ने किया बिल का विरोध

इस पूरे बिल को लेकर अब सरकार को भाजपा के भीतर ही चुनौती मिलनी शुरू हो गई है। एमपी की पूर्व सीएम और सांसद उमा भारती ने इस बिल का पुरज़ोर तरीके से विरोध किया है। उन्होंने इस बाबत दो पन्नो का खत प्रधानमंत्री को प्रेषित किया है। उमा भारती ने कहा है कि जब तक इस बिल में ओबीसी महिलाओं के लिए प्रावधान नहीं होगा वह विरोध करती रहेंगी। 1996 में देवेगौड़ा सर्कार ने जब यह बिल पटल पर रखा था तब भी उन्होंने इसका विरोध किया था। उमा भारती ने मांग किया है कि इस विधेयक में एससी, एसटी के साथ ओबीसी की स्थिति स्पष्ट की जाएँ।

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क्या है महिला आरक्षण?

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था। लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।

बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।

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