नयी दिल्ली, 26 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) को राष्ट्रीय राजधानी के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के वास्ते प्रस्तावित बजट पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया और कहा कि ‘‘कुछ प्रस्ताव अधिक हैं।’’
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां की पीठ ने कहा कि एफआरआई एक महीने के भीतर दिल्ली सरकार को संशोधित बजट सौंपने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र जैसी एजेंसियों की मदद लेने पर विचार कर सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम दिल्ली सरकार को निर्देश देते हैं कि बजट प्राप्त होने के बाद वह बजट अनुमान में दावा की गई राशि का कुछ हिस्सा जारी करे, ताकि चरण-1 का क्रियान्वयन तुरंत शुरू हो सके।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यदि सरकार के पास कोई प्रश्न है तो उसका समाधान किया जा सकता है। हालांकि, पहले चरण के लिए आवश्यक राशि की पहली किस्त जारी करने में देरी नहीं की जानी चाहिए।’’
अदालत ने यह भी कहा कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत वृक्ष की परिभाषा अस्पष्ट है और एफआरआई को भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा परिभाषित वृक्ष की परिभाषा अपनाने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने एफआरआई द्वारा प्रस्तावित कार्ययोजना पर ध्यानपूर्वक गौर किया है, जिसे तीन चरणों में विभाजित किया गया है। हम एफआरआई से अनुरोध करते हैं कि वह चरण एक के लिए प्रस्तावित 15 महीने की अवधि पर पुनर्विचार करे, ताकि वृक्ष गणना के कार्य में तेजी लायी जा सके। जहां तक चरण 3 का सवाल है, 24 महीने की समयसीमा बहुत लंबी है और हम एफआरआई को इसे कम करने पर विचार करने का निर्देश देते हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी को एफआरआई, देहरादून को राष्ट्रीय राजधानी के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार करने के लिए नियुक्त किया था और समयसीमा और धन की आवश्यकता को निर्धारित करने के लिए हलफनामा दायर करने के लिए एक महीने का समय दिया था।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले दिल्ली सरकार और निकायों को एक बैठक बुलाने और इस मुद्दे पर व्यापक उपायों पर चर्चा करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा कि पीठ ने वन विभाग और वृक्ष प्राधिकरण से अपेक्षा की थी कि वे दिल्ली में पेड़ों को अवैध रूप से नुकसान पहुंचाने की गतिविधि पर निगरानी रखें।
भाषा अमित रंजन
रंजन