नयी दिल्ली, 10 सितम्बर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वादकारी के खिलाफ आदेश जारी किये जाने पर न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध आरोप लगाने के बढ़ते चलन की निंदा करते हुए कहा है कि यदि ऐसा सतत जारी रहा तो अंतत: न्यायाधीशों का मनोबल गिरेगा।
शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ ही राजस्थान के धौलपुर की अदालत के समक्ष लंबित एक मामले को उत्तर प्रदेश के नोएडा की अदालत में स्थानांतरित करने संबंधी याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि मामले को इस आधार पर स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था कि (धौलपुर अदालत में) मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती और प्रतिवादी ‘बड़े लोग’ हैं जो अदालत को प्रभावित कर सकते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘हम इस प्रकार के रवैये और मामले को स्थानांतरित करने के लिए दिये गये आधार की निंदा करते हैं। महज इसलिए कि कोई आदेश (मौजूदा मामले में निष्पादन कार्यवाही में) न्यायिक पक्ष में जारी किया गया है और यह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जा सकता है, यह नहीं कहा जा सकता कि आदेश जारी करने वाली अदालत प्रभावित थी।’’
न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता किसी भी न्यायिक आदेश से पीड़ित हैं तो वे अपीलीय अदालत में चुनौती देना उचित उपाय होगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि महज इसलिए कि किसी अदालत ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आदेश पारित किये हैं, यह नहीं कहा जा सकता कि न्यायिक आदेश (किसी के) प्रभाव में आकर जारी किया होगा।
पीठ ने दो सितम्बर को जारी अपने आदेश में कहा, ‘‘इन दिनों वादकारी के विपरीत आदेश आने की स्थिति में इस तरह के आरोप लगाने का चलन बढ़ गया है। हम इस रवैये की निंदा करते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यदि इस तरह की प्रथा जारी रहती है, तो अंतत: इसका असर न्यायिक अधिकारियों के मनोबल पर पड़ेगा। दरअसल, ऐसे आरोप को न्यायिक प्रशासन में अवरोध भी कहा जा सकता है।’’
पीठ ने कहा कि किसी भी मामले में याचिका के स्थानांतरण के लिए कोई आधार नहीं तैयार किया गया है।’’
भाषा सुरेश पवनेश
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