शरजील इमाम ने उच्चतम न्यायालय से जमानत का अनुरोध किया

शरजील इमाम ने उच्चतम न्यायालय से जमानत का अनुरोध किया

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  • Publish Date - December 9, 2025 / 08:20 PM IST,
    Updated On - December 9, 2025 / 08:20 PM IST

नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) कार्यकर्ता शरजील इमाम ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में जमानत देने का अनुरोध करते हुए कहा कि वह न तो हिंसा में शामिल था और न ही उसकी इसमें कोई भूमिका थी और वह लगभग छह साल से विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में है।

शरजील के वकील ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ को बताया कि अभियोजन पक्ष ने उसके खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष केवल एक ही बात रखी है और वह है उसके द्वारा दिए गए कथित ‘भड़काऊ भाषण’।

शरजील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि भाषणों में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द ‘अरूचिकर’ थे।

दवे ने पीठ से कहा, ‘क्या कोई भाषण अपने आप में षड्यंत्रकारी प्रकृति का होता है? क्या ऐसा होता है? और यह ऐसा भाषण नहीं है जो केवल एकतरफा हो। मैंने दिखाया है कि उसने अहिंसा का आह्वान किया। वह कहते हैं कि आप मार खाइए, हमला मत कीजिए। वह यही कह रहे थे।’

दवे के अलावा, वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, सिद्धार्थ लूथरा और अन्य ने भी मामले में कुछ अन्य आरोपियों की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं।

बहस के दौरान, दवे ने कहा कि शरजील को 28 जनवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और दिल्ली में दंगे 22-24 फरवरी, 2020 को हुए थे।

उन्होंने दलील दी, ‘आज, वह आपके समक्ष जमानत का अनुरोध कर रहा है। लगभग छह साल हिरासत में रहने के बाद, कृपया इस बात पर विचार करें कि उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाए। खासकर तब जब वह उन मामलों में आरोपी नहीं है, जहां वास्तविक दंगे हुए थे।’

दवे ने कहा कि साज़िश में विचारों का मेल शामिल होता है और इमाम दंगों से लगभग एक महीने पहले ही हिरासत में था। उन्होंने दलील दी कि दंगों के संबंध में लगभग 750 प्राथमिकी दर्ज की गईं और उनमें इमाम का नाम नहीं था।

इस मामले में बहस बुधवार को भी जारी रहेगी।

कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील और अन्य की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस ने कहा था कि फरवरी 2020 के दंगे कोई स्वतःस्फूर्त घटना नहीं थे, बल्कि ये भारत की संप्रभुता पर ‘सुनियोजित’ हमला था।

उमर, शरजील और अन्य आरोपियों पर 2020 के दंगों के कथित तौर पर ‘मास्टरमाइंड’ होने के लिए कड़े आतंकवाद विरोधी कानून गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे।

भाषा आशीष नरेश

नरेश