नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह एक निजी पक्ष के लिए मुआवजे की “उचित” राशि तय करे, जिसकी संपत्ति पर राज्य ने छह दशक से भी ज्यादा पहले “अवैध” तरीके से कब्जा कर लिया था।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि यदि वह प्रभावित पक्ष को उचित मुआवजा नहीं देती है तो अदालत “लाडली बहना” जैसी योजनाओं को रोकने और अवैध रूप से अधिग्रहित भूमि पर निर्मित संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश देगी।
पीठ ने कहा, “यदि हमें यह राशि उचित नहीं लगेगी तो हम राष्ट्रीय हित या सार्वजनिक हित में संरचना को ध्वस्त करने का निर्देश देंगे। हम 1963 से लेकर आज तक उस भूमि के अवैध उपयोग के लिए मुआवजा देने का निर्देश देंगे….।”
उसने कहा, “उचित आंकड़ों के साथ आइए। अपने मुख्य सचिव से कहिए कि वे मुख्यमंत्री से बात करें। नहीं तो हम सारी योजनाएं बंद कर देंगे।”
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने अदालत को बताया कि वह मुआवजे के तौर पर 37.42 करोड़ रुपये देने को तैयार है।
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि राजस्व और वन विभाग ने भूमि मालिक के मामले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया है।
पीठ ने वकील से कहा कि वह अधिक मुआवजे के संबंध में मुख्य सचिव से निर्देश लें और मामले की सुनवाई दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
न्यायालय को हालांकि बताया गया कि मुख्य सचिव कैबिनेट बैठक में हैं और मामले की सुनवाई बुधवार को तय की गई है।
न्यायालय महाराष्ट्र में वन भूमि पर भवनों के निर्माण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी, जहां एक निजी पक्ष ने सर्वोच्च न्यायालय से उस भूमि पर कब्जा पाने में सफलता प्राप्त कर ली है जिस पर राज्य सरकार ने “अवैध रूप से कब्जा” कर लिया था।
राज्य सरकार ने दावा किया है कि उक्त भूमि पर केन्द्र के रक्षा विभाग की इकाई, आयुध अनुसंधान विकास स्थापना संस्थान (एआरडीईआई) का कब्जा है।
सरकार ने कहा है कि बाद में, एआरडीईआई के कब्जे वाली भूमि के बदले में निजी पक्ष को एक और भूमि आवंटित की गई थी।
हालांकि, बाद में पाया गया कि निजी पक्ष को आवंटित भूमि वन भूमि के रूप में अधिसूचित की गई थी।
अपने 23 जुलाई के आदेश में पीठ ने कहा कि निजी पक्ष, जो इस न्यायालय तक आया है, को उसके पक्ष में पारित आदेश के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।
भाषा
प्रशांत धीरज
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