नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पैरोल और ‘फर्लो’ का मूल उद्देश्य दोषियों को ‘‘जेल में रखने से रोकना’’ है और यह राहत दोषियों के ‘‘सुधार की दिशा में एक कदम’’ है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया दोषी साबित हो चुके चेतन द्वारा संबंधित प्राधिकारी के आदेश के खिलाफ दायर आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उसकी ‘फर्लो’ याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसने पहले मिली ‘फर्लो’ का उल्लंघन किया था और नियत तिथि के तीन दिन बाद आत्मसमर्पण किया था।
याचिका में दावा किया गया कि दोषी ने आंख में चोट लगने के कारण निर्धारित तिथि के बाद आत्मसमर्पण किया।
न्यायाधीश ने प्राधिकारी को आवेदन पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया।
उन्होंने तीन सितंबर को पारित आदेश में कहा, ‘‘अधिकारियों को पैरोल और फर्लो की अवधारणाओं के मूल उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। पैरोल और फर्लो के अनुरोधों की पड़ताल अन्य मुद्दों से अलग दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। इन प्रावधानों का मूल उद्देश्य जेल में रखने से रोकना है और इस प्रकार ये अपराधी के सुधार की दिशा में कदम हैं।’’
दलीलों के दौरान सरकार की ओर से उपस्थित वकील ने स्वीकार किया कि प्राधिकारी के आदेश में पूरे तथ्य नहीं थे, इसलिए इसे ‘‘बरकरार नहीं रखा जा सकता’’।
उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि आदेश को रद्द किया जाए और मामले को नए सिरे से निर्णय लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी को वापस भेज दिया जाए।
पैरोल और ‘फर्लो’ कैदियों को मिलने वाली अस्थायी रिहाई है जो किसी विशिष्ट अत्यावश्यक कारण और अच्छे आचरण के लिए दी जाती है।
भाषा नेत्रपाल अविनाश
अविनाश