शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार से आईएफओएस अधिकारी के खिलाफ जांच पूरी करने को कहा

शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार से आईएफओएस अधिकारी के खिलाफ जांच पूरी करने को कहा

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  • Publish Date - September 17, 2025 / 09:19 PM IST,
    Updated On - September 17, 2025 / 09:19 PM IST

नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तराखंड सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपी भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच तीन महीने के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया और केंद्र से कहा कि वह भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत उसके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने राज्य से यह भी पूछा कि राहुल नामक अधिकारी के साथ ‘खास बर्ताव’ क्यों किया गया, जबकि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं। अदालत ने पाया कि इसके बावजूद उन्हें विशेष पदस्थापना दी गई थी।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता प्राधिकारियों की ओर से पेश हुए।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार ने राहुल को छोड़कर सभी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।

प्रधान न्यायाधीश ने आदेश दिया, “आज यह सूचित किया गया है कि राज्य सरकार ने उक्त अधिकारी के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति दे दी है। प्रस्तुत किया गया है कि जहां तक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत स्वीकृति का प्रश्न है… राज्य सरकार का कहना है कि इसे केंद्र सरकार को भेज दिया गया है।”

उन्होंने कहा, “हम राज्य सरकार के रुख को स्वीकार करते हैं। हम उत्तराखंड सरकार को उक्त अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच शीघ्र और तीन महीने के भीतर पूरी करने और केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी देने और एक महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।’

पीठ कॉर्बेट बाघ अभयारण्य के पूर्व निदेशक राहुल की नियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी और उन्हें राजाजी बाघ अभयारण्य का निदेशक बनाया गया था।

पीठ ने कहा था कि सरकार के प्रमुखों से ‘पुराने दिनों के राजा’ होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है और हम ‘सामंती युग’ में नहीं हैं। पीठ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से राज्य के वन मंत्री और अन्य की राय की अनदेखी करते हुए आईएफओएस अधिकारी को राजाजी बाघ अभयारण्य के निदेशक के रूप में नियुक्त करने पर सवाल उठाया था।

पीठ ने पूछा था, ‘‘मुख्यमंत्री को उनसे (अधिकारी से) विशेष स्नेह क्यों होना चाहिए?’’ इसने यह भी कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं?’’

भाषा नोमान सुरेश

सुरेश