नयी दिल्ली, 26 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया कि वह उन दो पत्रकारों को चार और हफ्ते तक गिरफ्तार न करे, जिनके खिलाफ एक लेख लिखने और ‘एक्स’ पर कुछ पोस्ट करने को लेकर चार प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने अपने पिछले आदेश की अवधि बढ़ाते हुए राज्य पुलिस से कहा कि वह पत्रकार अभिषेक उपाध्याय और ममता त्रिपाठी के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कदम न उठाए।
पीठ ने कहा कि इस बीच, पत्रकार उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए कानूनी उपायों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
उपाध्याय ने ‘‘सामान्य प्रशासन में जातीय पहलुओं’’ पर एक लेख लिखा था, जिसमें दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण पदों पर विशेष जाति के लोग आसीन हैं।
विभिन्न पोस्ट के लिए त्रिपाठी के खिलाफ कई प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं।
उपाध्याय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि पुलिस ने उनके खिलाफ ‘‘धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के अपराध’’ के आरोप में गैर-जमानती दंडात्मक प्रावधानों का इस्तेमाल किया और उन्हें राज्य की बलपूर्वक कार्रवाई के खिलाफ संरक्षण की आवश्यकता है।
पीठ ने उपाध्याय और त्रिपाठी की याचिकाओं का निपटारा कर दिया।
इससे पहले, पीठ ने उपाध्याय को संरक्षण देते हुए कहा था, ‘‘लोकतांत्रिक देशों में, अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित हैं। केवल इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए।’’
बाद में, त्रिपाठी को भी दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान कर दिया गया था।
भाषा जोहेब नेत्रपाल
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