न्यायालय ने दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला

न्यायालय ने दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला

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  • Publish Date - March 4, 2025 / 10:22 PM IST,
    Updated On - March 4, 2025 / 10:22 PM IST

नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने नाबालिग बच्चों की हत्या करने वाले एक व्यक्ति की मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 13 फरवरी को मृत्युदंड के खिलाफ रमेश ए नायका की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा और कहा, ‘‘अपीलकर्ता-दोषी की हत्याओं के लिए दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है, लेकिन अब उसे बिना किसी छूट के, जेल की चाहरदीवारी में अपने प्राकृतिक अंत की प्रतीक्षा करनी होगी।’’

शीर्ष अदालत ने पाया कि पूर्व बैंक प्रबंधक नायका का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। न्यायालय ने कहा कि अपराध को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ ठहराते हुए निचली अदालत द्वारा सजा में नरमी के लिये सभी परिस्थितियों पर विचार नहीं किया गया था।

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति करोल ने कहा, ‘‘हमें एक पल के लिए भी यह नहीं समझना चाहिए कि अपराध की बर्बरता, दो बच्चों के असहाय होने, जो सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अंत को प्राप्त हुए, और वह भी उस व्यक्ति के हाथों, जिसने उन्हें दुनिया में लाने की आधी जिम्मेदारी उठाई थी, हमारी आंखों से बच गई है, या हमने किसी भी तरह से इस तरह के घृणित कृत्य को माफ कर दिया है।’’

नायका पर यह भी आरोप लगाया गया कि उसने अपनी साली को भी एक अलग जाति के व्यक्ति से प्यार करने के कारण और अपनी सास को ‘उनकी कोई गलती नहीं होने पर’ भी मार डाला और उसे अलग-अलग दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, नायका और उसकी पत्नी दोनों ही क्रमशः सोलापुर और मंगलूर में बैंक प्रबंधक थे और उनके दो बच्चे थे – एक 10 साल का बेटा और साढ़े तीन साल की बेटी।

उसने 16 जून, 2010 को अपनी साली और सास की हत्या कर दी और उनके शवों को पैतृक गांव में अपने घर के सेप्टिक टैंक में फेंक दिया तथा अगले दिन मंगलूर आ गया।

वह अपने बच्चों को शहर घुमाने के बहाने टैक्सी में ले गया और एक बगीचे में जाकर उन्हें पानी की टंकी में डुबो दिया।

भाषा वैभव दिलीप

दिलीप