नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को पूर्व कोयला राज्य मंत्री संतोष कुमार बागरोडिया, राज्यसभा के पूर्व सदस्य विजय दर्डा और अन्य को कोयला घोटाला मामले की जांच को कथित रूप से प्रभावित करने के 2017 के मामले में आरोपमुक्त कर दिया।
विशेष न्यायाधीश अरुण भारद्वाज ने कहा कि बागरोडिया, दर्डा, उनके बेटे और लोकमत मीडिया समूह के प्रबंध निदेशक देवेंद्र दर्डा और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व अतिरिक्त कानूनी सलाहकार (एएलए) के. सुधाकर के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
सीबीआई ने आरोप लगाया था कि उसके पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा (अब दिवंगत) और सुधाकर ने दर्डा पिता-पुत्र और बागरोडिया के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र रचा और फाइलों पर लिखने समेत रिकॉर्ड तैयार किया, जिसका उद्देश्य यह था कि उनके कार्यों से दर्डा पिता-पुत्र और बागरोडिया कानूनी सजा से बच जाएंगे।
देवेन्द्र दर्डा को आरोपमुक्त करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि रंजीत सिन्हा के साथ उनकी मुलाकातों से उनके खिलाफ मामले के नतीजे पर कोई फर्क नहीं पड़ा और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की गई।
न्यायाधीश ने कहा, ‘रंजीत सिन्हा ने देवेन्द्र दर्डा के खिलाफ मामले को दबाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया। यदि कोई आपराधिक षड्यंत्र हुआ होता, जैसा कि आरोपपत्र में कहा गया है, तो सीबीआई के निदेशक ने एएलए के. सुधाकर की राय का पालन किया होता और देवेन्द्र दर्डा को दोषमुक्त कर दिया होता। देवेन्द्र दर्डा के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने से पता चलता है कि सिन्हा ने देवेन्द्र दर्डा का कोई पक्ष नहीं लिया।’
विजय दर्डा को आरोप मुक्त करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि यदि कोई आपराधिक षड्यंत्र हुआ होता, जैसा कि आरोपपत्र में कहा गया है, तो सीबीआई के निदेशक एएलए के. सुधाकर की राय का पालन करते और उन्हें दोषमुक्त कर देते।
न्यायाधीश ने कहा कि इससे यह भी पता चलता है कि रंजीत सिन्हा द्वारा विजय दर्डा और देवेंद्र दर्डा के खिलाफ जांच को बाधित करने के लिए पद का दुरुपयोग करने की कोई साजिश नहीं की गई थी।
सुधाकर को आरोपमुक्त करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि सिन्हा के मामले के विपरीत, ऐसा कोई आरोप नहीं है कि वह दर्डा पिता-पुत्र या संतोष बागरोडिया से मिले थे या उनसे टेलीफोन पर बातचीत की थी।
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नोमान संतोष
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