न्यायालय ने दिवंगत व्यक्ति की पत्नी को जमीन का मालिक घोषित करने के आदेश को बरकरार रखा

न्यायालय ने दिवंगत व्यक्ति की पत्नी को जमीन का मालिक घोषित करने के आदेश को बरकरार रखा

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  • Publish Date - July 17, 2025 / 10:05 PM IST,
    Updated On - July 17, 2025 / 10:05 PM IST

नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक दिवंगत व्यक्ति की पत्नी को उसकी जमीन का असली मालिक घोषित करने के आदेश को बृहस्पतिवार को बरकरार रखा और कहा कि वसीयत में उसकी स्थिति या जायदाद से उसकी बेदखली के कारण का खुलासा न करने की पड़ताल अलग से नहीं की जानी चाहिए, बल्कि मामले के तथ्यों के आलोक में की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा नवंबर 2009 में पारित उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, जिसमें पत्नी को भूमि का मालिक घोषित किया गया था।

पीठ ने कहा कि नवंबर 1991 में उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद, उसके भतीजे ने मई 1991 में अपने चाचा द्वारा निष्पादित एक वसीयत का हवाला देते हुए मुकदमा दायर किया, जिसमें भूमि उसके नाम कर दी गई थी।

अधीनस्थ अदालत ने मई 1991 की वसीयत को असली घोषित किया और उसके अनुसार, मृतक का भतीजा जमीन का वैध मालिक है।

बाद में, उच्च न्यायालय ने निचली अदालत और प्रथम अपीलीय अदालत के फैसलों को खारिज करते हुए पत्नी को जमीन का असली मालिक घोषित किया।

मामले के लंबित रहने के दौरान दोनों दावेदारों, मृतक की पत्नी और भतीजे की मृत्यु हो गई तथा उनके स्थान पर उनके कानूनी प्रतिनिधि शीर्ष न्यायालय में उपस्थित हुए।

पीठ ने कहा कि अन्य दस्तावेजों के विपरीत, वसीयतनामा तैयार किये जाने के बाद, यह कराने वाला व्यक्ति अब जीवित नहीं है।

अदालत ने कहा, ‘‘इससे अदालत पर यह सुनिश्चित करने का गंभीर दायित्व आ जाता है कि प्रस्तुत वसीयतनामा विधिवत सिद्ध हुआ है या नहीं।’’

पीठ ने कहा कि अधीनस्थ अदालत का यह कहना त्रुटिपूर्ण था कि मृतक की पत्नी द्वारा उसका अंतिम संस्कार न करना, दंपति के बीच ‘‘संबंधों में खटास’’ का संकेत देता है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘आमतौर पर, एक हिंदू/सिख परिवार में, अंतिम संस्कार सपिंड रिश्तेदारों द्वारा किया जाता है। इस परंपरा को देखते हुए, प्रथम प्रतिवादी (पत्नी) द्वारा अंतिम संस्कार न करना, उसके पति के जीवनकाल में उसके साथ संबंधों में खटास का संकेतक नहीं माना जा सकता।’’

भाषा सुभाष माधव

माधव