मदुरै, 15 दिसंबर (भाषा) तमिलनाडु हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग ने सोमवार को मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर एक दरगाह के पास स्थित ‘दीपथून’ कहा जाने वाला पत्थर का स्तंभ मंदिर का दीपक स्तंभ नहीं है और यह जैन धर्म से संबंधित हो सकता है।
अरुलमिघु सुब्रमण्य स्वामी मंदिर, तिरुप्परनकुंद्रम, के कार्यकारी अधिकारी ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के समक्ष प्रतिवेदन दिया कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य दर्शाते हैं कि दरगाह के पास स्थित वह संरचना, जहां एक एकल न्यायाधीश ने एक दिसंबर को कार्तिगई दीपम पर दीपक जलाने (तीन दिसंबर को) की अनुमति दी थी, एक ‘समना दीपथून’ थी, न कि कार्तिगई दीपम के लिए निर्धारित मंदिर का दीपथून था।
जब पीठ ने आज एक दिसंबर के आदेश के विरुद्ध अपीलों के समूह की सुनवाई शुरू की, तो वकील ने तर्क दिया कि उच्चिपिल्लैयार मंदिर के पास स्थित संरचना ही मंदिर से संबंधित प्रामाणिक दीपथून है।
विभाग ने 1920 में बोस नामक विद्वान द्वारा लिखित एक पुस्तक प्रस्तुत की, जिसमें ‘कार्तिगई दीपम’ प्रज्वलित किए जाने वाले पारंपरिक स्थान का विवरण था।
तमिलनाडु पुरातत्व विभाग द्वारा 1981 में प्रकाशित एक पुस्तक, जिसमें प्रख्यात विद्वान नागस्वामी द्वारा लिखित प्रस्तावना थी, को भी न्यायमूर्ति जी. जयचंद्रन और न्यायमूर्ति के.के. रामकृष्णन की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जो ‘दीपथून’ मामले में ‘कार्तिगई दीपम’ दीपक प्रज्वलन के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य अधिकारियों की अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।
वरिष्ठ वकील एन. ज्योति ने कहा कि तमिलनाडु हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग ने धार्मिक अनुष्ठानों और मंदिर प्रशासन के लिए स्पष्ट प्रक्रियाएं निर्धारित की हैं।
दरगाह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता टी. मोहन ने कहा कि अगर हर श्रद्धालु को किसी काम को करने के तरीके पर अपनी राय रखने का अधिकार होगा, तो यह समस्या कभी खत्म नहीं होगी।
भाषा संतोष प्रशांत
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