Holika Dahan Ki Kahani : फाल्गुन पूर्णिमा पर ही क्यों किया जाता है होलिका दहन? वजह जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

Holika Dahan Ki Kahani : रविवार 24 मार्च को होलिका दहन है और अगले दिन यानी सोमवार 25 मार्च को रंगो का त्योहार होली मनाया जाएगा।

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  • Publish Date - March 23, 2024 / 02:27 PM IST,
    Updated On - March 23, 2024 / 02:27 PM IST

नई दिल्ली : Holika Dahan Ki Kahani : रविवार 24 मार्च को होलिका दहन है और अगले दिन यानी सोमवार 25 मार्च को रंगो का त्योहार होली मनाया जाएगा। होलिका दहन 24 मार्च को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 20 मिनट के बीच में किया जाएगा। होलिका दहन का पर्व पौराणिक काल से राजा हिरण्यकश्यप उसके पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद और बहन होलिका से जुड़ा है। रण्यकश्यप अपने को भगवान कहता था जबकि उसका पुत्र विष्णु जी की आराधना करता था जिसके कारण उसने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किए किंतु सफल नहीं हुआ. तभी उसकी बहन ने आकर बताया कि उसे तो आग से न जलने का वरदान मिला हुआ है। मैं अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाऊंगी और प्रह्लाद उसी आग में जल कर भस्म हो जाएगा।

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होलिका जली लेकिन प्रह्लाद को नहीं हुआ कुछ

Holika Dahan Ki Kahani : यह विचार राजा हिरण्यकश्यप को भी समझ में आया और लकड़ी का बड़ा सा ढेर बना कर उसमें होलिका अपने भतीजे को गोद में लेकर बैठ गयी। प्रह्लाद तो भगवान का प्रिय भक्त था और पग पग पर वही उसकी रक्षा कर रहे थे इसलिए वह आग से जरा भी भयभीत नहीं हुआ और भगवान का मंत्र ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करता रहा। इधर होलिका बैठी तो लकड़ी में आग लगा दी गयी। देखते ही देखते लकड़ी के साथ ही होलिका भी जल गयी लेकिन भक्त प्रह्लाद अपने प्रभु का स्मरण करता रहा उसे कुछ भी नहीं हुआ।

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इस वजह से निष्प्रभावी हो गया था होलिका का वरदान

Holika Dahan Ki Kahani : ऐसा कहा जाता है कि, होलिका का यह वरदान आग से उस स्थिति में बचाने के लिए था, जब वह अकेली हो लेकिन वह अपने भतीजे को गोद में लेकर उसे जलाने की नीयत से बैठी थी। इसी कारण से भगवान का दिया वरदान भी उसके लिए निष्प्रभावी हो गया। तभी से लोग इस पर्व को होलिका दहन के रूप में मनाने लगे। जिस दिन शाम के समय लकड़ी के ढेर पर होलिका अपने भतीजे को लेकर बैठी थी वह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी। इसी कारण प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन के रूप में बुराइयों को जलाने की परंपरा है। भक्त प्रह्लाद के आग से बचकर निकल आने की प्रसन्नता में अगले दिन लोग हंसी खुशी में एक दूसरे को अबीर गुलाल लगा कर रंग खेलते हैं।

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