Lifestyle news: स्त्री-पुरुष के बीच सेक्स संबंधों में सबसे अहम भूमिका स्त्री के स्तन निभाते हैं। पुरुष को यह जहां संतुष्टि देने में सहायक होते हैं तो वहीं स्त्री को भी यह आत्मिक सुख देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? इस पर हाल ही में यूरेशिया यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च जारी की है। इसके मुताबिक स्त्री-पुरुष सेक्स के बीच स्तन के सेतु का काम करते हैं। यह रिसर्च विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के शोधार्थियों द्वारा यूरोप, एशिया, भारत, अमेरिका के अलावा नीदरलैंड के कुछ युगल जोड़ों पर की गई है। इसके कुछ निष्कर्ष इस प्रकार के हैं।
men press on breasts during sex? यौन व्यवहार शुरू करने से पहले स्त्रियों के स्तन पुरुष को आमंत्रण देते हैं। इसीलिए स्त्री-पुरुष यौन प्रक्रिया के दौरान स्तनों की भूमिका अहम होती है। पुरुष अपनी सेक्सुअल भावनाओं को और तुष्ट करने के लिए इन्हें प्रेज करता है। इससे पुरुष के साथ ही स्त्री को भी संतुष्टि मिलती है। ओरेगैमी यानी आनंद का चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के लिए यह प्रक्रिया आवश्यक होती है।
वात्स्यायन द्वारा लिखे कामसूत्र शास्त्र में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है। इसमें 64 काम कलाओं का जिक्र है। इनमें स्त्री द्वारा पुरुष को आकर्षित करने से लेकर संतुष्ट करने तक के लिए अपनाई जाने वाली कलाओं का जिक्र है। इसमें 64 काम-आसन भी कहे गए हैं। कामसूत्र से ही प्रेरित होकर खजुराहो, कोणार्क में काम कला केंद्रित मूर्तियां बनाई गई हैं। वहीं दैवीय शक्ति के रूप में चौसठ योगिनियों की कल्पना भी इसी आधार पर की गई है। स्त्री-पुरुष संबंधों में स्तनों का अत्यधिक महत्व है। एक पुरुष को स्त्री अपने वक्षों के सौष्ठव से अधिक संतुष्ट कर सकती है। जबकि मनोविज्ञानिक फ्रायड के मुताबिक स्तन स्त्री के बंडल ऑफ सेक्स ऑर्गेन का हिस्सा होते हैं। इसलिए स्त्री भी इन पर पुरुष के हाथों के स्पर्श को भरपूर एंजॉय करती है।
इस विषय पर ओशो की एक स्पीच चर्चित है। वे कहते हैं, स्त्री के स्तन और मानव मन का गहरा नाता है। इस नाते को साधारण लोग नहीं समझते, किंतु यह उनके भी व्यवहार पर प्रतिबिंबित होती है। ओशो कहते हैं, शिशु जब मां के गर्भ में होता है तो वह बिल्कुल अकेला होता है। उसे पोषण मां के गर्भनाल से मिलता है। वह इप्सम सॉल्ट वाले पानी में पड़ा रहता है। पश्चिम में इसे एक प्रकार की समाधि कहा गया है। इसकी ही नकल करते हुए एक टैंक बनाकर घंटे दो घंटे के लिए लोगों को समाधिष्ट किया जाता है। जब शिशु का जन्म होता है तो उसे सबसे पहला भोजन स्तनों के माध्यम से मां के दूध से मिलता है। नवजात शिशु का संसार में सबसे पहले अगर किसी से वास्ता पड़ता है तो वह स्त्री के स्तन ही होते हैं। मनोविज्ञानी कहते हैं यह शिशु के बालमन पर जीवनभर के लिए बैठ जाता है। यह आगे चलकर इंसान की मनोविज्ञानिक जरूरत बन जाती है। बच्चा जब तक समझदार नहीं होता, वह मां का दूध पीता रहता है। वह भोजन के दूसरे स्रोत मिल जाने के बावजूद मां के दूध को अलग चाव से पीता है। यह इसीलिए होता है, क्योंकि उसका मन मां के दूध में अधिक संतुष्ट होता है।
इसी पर मनोविश्लेषक डॉ. श्याम जाजोदिया कहते हैं, बच्चा जब बड़ा होता जाता है तो मां के दूध से तो दूर हो जाता है, लेकिन उसके अवचेतन में स्तनों के प्रति आकर्षण बना रह जाता है। जब वह किशोर अवस्था में आता है, जिसे प्युबर्टी एज कहते हैं तब वह इनमें रहस्य खोजने लगता है। उसे इनका उभार अच्छा लगता है। यह क्रिया फीमेल चाइल्ड में भी हो रही होती है। उसे स्वयं के उभरे स्तन अच्छे और कमजोर स्तन हीनता के भाव से ग्रस लेते हैं। स्तनों से जुड़ाव का यह रूप सेक्स में परिलक्षित होता है। यही कारण है कि सेक्स के दौरान स्तनों को लेकर पुरुष-स्त्री का विशेष आकर्षण होता है।
ठीक ऐसा ही स्त्रियों के साथ भी होता है। चूंकि शिशुकाल में युवतियों में भी यह मनोभाव काम करता है। स्तन पर किसी भी तरह की गतिविधि स्त्री को चरम सुख की ओर ले जाती है। देश के प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा कहते हैं, पश्चिम में फ्रायड ने इंसान को बंडल ऑफ सेक्स कहा है। फ्रायड कहते हैं एक छोटे बच्चे को कहीं से भी छूओ वह आनंद महसूस करता है। जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है उसके शरीर में आनंद का दायरा सीमित होते-होते गुप्तांगों तक रह जाता है। महिलाओं में यह दायरा वक्ष और गुप्तांगों तक सीमित रहता है। कई बार निश्छल मन वाले मनुष्यों के पेट तक यह दायरा रहता है। उन्हें जरा सा छूने पर गुदगुदी लगती है। इस परिभाषा से देखें तो स्तनों की संवेदनशीलता का मानव के मनोविज्ञान से सीधी जुड़ी है। इसीलिए सेक्स के दौरान पुरुष स्त्री के स्तन दबाते हुए आनंद महसूस करते हैं तो स्त्रियां भी इसमें परमसुख खोजती हैं।
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