बीजेपी के आगे सरेंडर.. कांग्रेस को किस बात का डर? कई इलाकों में बिना चुनाव लड़े ही जीत गई भाजपा

बीजेपी के आगे सरेंडर.. कांग्रेस को किस बात का डर? : BJP won many areas without contesting elections in Madhya pradesh

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  • Publish Date - June 24, 2022 / 01:23 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:16 PM IST

BJP won many areas without elections  (रिपोर्टः नवीन कुमार सिंह) भोपालः कांग्रेस पार्टी देश में सबसे मजबूत विपक्ष के तौर पर मध्य प्रदेश में ही है। इस निकाय चुनाव को कांग्रेस ने ही सबसे पहले सेमीफाइनल के तौर पर प्रचारित करना शुरू किया था। बाद में बीजेपी ने भी इसे सेमीफाइनल माना, लेकिन निकाय चुनाव से पहले ही कई जगहों पर बीजेपी के आगे उसे सरेंडर करना पड़ा। जिसके बाद अब ये सवाल उठने लगा कि कांग्रेस को किस बात का डर सता रहा है। शाहगंज, सागर, दतिया ऐसे कई इलाकों में बीजेपी बिना चुनाव लड़े ही जीत गई, जो कम से कम लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए तो अच्छे संकेत नहीं हैं। तो इन सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी को वॉकओवर क्यों दिया।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp  ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<

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उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन के साथ सीएम शिवराज ने निकाय चुनाव में प्रचार का शंखनाद किया। तो दूसरी ओर कांग्रेस बीजेपी को वॉकओवर देती नजर आ रही है। ये हम नहीं बल्कि आंकड़े बोल रहे हैं। खासकर बीजेपी के दिग्गज नेताओँ के क्षेत्र में कांग्रेस ने बिना लड़े सरेंडर किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र शाहगंज नगर परिषद में बीजेपी के सभी प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए. यहां सभी 15 वार्डों में बीजेपी को वॉकओवर मिला। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के गृह क्षेत्र सागर की तीन परिषद बरोदिया, मालथौन और बांदरी में 45 में 38 बीजेपी प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए हैं. वहीं गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के दतिया में दतिया नगरपालिका और बरौनी नगर पंचायत में भी बीजेपी निर्विरोध जीती. सतना जिले की उचेहरा नगर पालिका में कांग्रेस प्रत्याशियों के सरेंडर करने की वजह से बीजेपी के 9 प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए। जाहिर है बीजेपी के हौंसले बुलंद है. और सभी निकायों में जीत का दावा भी हो रहा है।

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कई नगरीय निकायों में कांग्रेस प्रत्याशियों ने ऐन मौके पर गच्चा दिया है. आखिरी वक्त पर नाम वापस लेने से पार्टी की किरकिरी भी हुई। हालांकि कांग्रेस ये मान रही है कि पार्टी के भीतर फूलछाप कांग्रेसियों की वक्त रहते पहचान नहीं कर सके। कांग्रेस प्रत्याशियों के मैदान छोड़ने के पीछे पार्टी का तर्क भी सुन लीजिए।

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नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों को एमपी में सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस नॉकआउट राउंड में बिना लड़े बाहर होना, कई सवाल खड़े करता है। वो भी तब जब खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी ये कह चुके हैं कि 2023 का रास्ता 2022 के नगरीय निकाय चुनावों से ही होकर गुजरेगा। यानि कांग्रेस के लिए करो या मरो के हालात हैं। ऐसे में बीजेपी के आगे कांग्रेस के सरेंडर करने से उसका दावा थोड़ा कमजोर नजर आ रहा है।