भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति ने एक बार फिर OBC वर्ग की ओर करवट ले लिया है। इस चुनावी साल में दोनों ही दल OBC वोटर्स को रिझाने में जुटे हैं।
मध्यप्रदेश की सियासत की सुई एक बार फिर ओबीसी वर्ग की ओर घूम गई है। अब इसे जरूरत कह लें या सियासी मजबूरी लेकिन ओबीसी को साधे बगैर 23 के चुनाव को जीतना बेहद मुश्किल है। यही वजह है कि कांग्रेस 5 जनवरी को सतना में OBC सम्मेलन करने जा रही है। इस सम्मेलन में कमलनाथ की मौजूदगी में OBC समाज के तमाम नेता और पदाधिकारी एकजुट होंगे।
कांग्रेस के सम्मेलन को देखते हुए बीजेपी ने भी बड़ा दांव चल दिया है। पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल ने बताया कि OBC वर्ग के लिए सरकार नया प्लान लाई है। इसके तहत स्वरोजगार के लिए साढ़े बयालीस करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं।
आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में करीब 52 फीसदी ओबीसी वर्ग की आबादी है। विधानसभा की 100 से ज्यादा सीटों पर OBC वर्ग का दखल है और फिलहाल सदन में OBC वर्ग के 60 विधायक हैं। इसके साथ ही प्रशासनिक क्षेत्र में 25.83 फीसदी पदों पर OBC वर्ग काबिज है। जाहिर है, एमपी के सबसे बड़े वोट बैंक पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों की ही नजर हैं और दोनों ही दल एक-दूसरे को OBC का सबसे बड़ा हितैषी करार देने में जुटे हैं।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप नई बात नहीं है लेकिन क्या वाकई 2023 के चुनाव में OBC वोटर्स किंगमेकर होंगे और यदि ऐसा है तो OBC आखिर किसका साथ देंगे? सवाल ये भी है कि OBC पर फोकस से दूसरे वर्गों में नाराजगी किसकी मुश्किलें बढ़ाएगी?