महंगी जमीन ने लगाया विकास पर ब्रेक, BJP सरकार को जिम्मेदार बता रही Congress
भले ही तेजी से बढ़ रहे जमीन के दाम, लेकिन औद्योगिक विकास में पीछे धकेल दिया पीछे! Rising land prices pushed the capital back many years
भोपाल: Rising land prices Bhopalभले ही मध्यप्रदेश की राजधानी हो लेकिन यहां लगातार बढ़ती जमीन की कीमतों ने इसे औद्योगिक विकास में पीछे धकेल दिया है। जबकि इंदौर बीते 13 सालों से तेजी से इंडस्ट्रियल हब के रूप में उभरा है।
Rising land prices कहते हैं जमीन के दाम ही शहरों की तस्वीर और तकदीर की इबारत लिखते हैं, यानी जमीनों के जितने कम दाम होंगे। उस शहर में निवेश..इंडस्ट्री..रोजगार उतना ही ज्यादा बढ़ेगा, लेकिन इस मामले में भोपाल, जिला प्रशासन की मनमानी की भेंट चढ़ गया। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि साल 2010 से अब तक कलेक्टर गाइडलाइन में राजधानी में 615 फीसदी तक जमीनों के दाम बढ़ाए गए हैं। जबकि इंदौर में ये आंकड़ा मजह 50 फीसदी का है। बीते 1 अप्रैल से प्रदेश में नई कलेक्टर गाइडलाइन की दरें भी लागू कर दी गई हैं। चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और क्रेडाई की अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि इंदौर के मुकाबले भोपाल में लगातार जमीनों के दाम बढ़ाए गए हैं। लिहाजा इंदौर का विकास दर भी भोपाल से चार सौ फीसदी ज्यादा रही है। इंदौर बड़े उद्योगपतियों की पहली पसंद रहा है। जबकि भोपाल की औद्योगिक क्षमता इंदौर से कहीं ज्यादा है।
आइए बताते हैं आपको भोपाल पर असर क्या पड़ा
- गोविंदपुरा औद्योगिक केंद्र में बड़े निवेश नहीं आ सके
- अचारपुरा औद्योगिक केंद्र आज भी बड़े निवेशकों से महरूम
- भोपाल में प्रदेश स्तरीय कर्मशियल हब की प्लानिंग फेल
- भोपाल स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में मीटिंग के बाद भी निवेश नहीं
बेवजह बीते 13 सालों में 615 फीसदी तक बढ़ाए गए जमीनों के दामों से पिछड़े भोपाल के लिए कांग्रेस प्रदेश सरकार को कसूरवार ठहरा रही है। वहीं, बीजेपी के मंत्री कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर रहे हैं।
एक तरफ तो ईज ऑफ डूइंग पॉलिसी पर अमल का दावा किया जा रहा है तो दूसरी ओर जमीनों के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी ऐसी नीतियों की कमर तोड़ रही है। जरूरत है नीतियों और फैसलों में सुधार की, जो प्रदेश के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकें।

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