भोपाल : Shivraj New Cabinet : एमपी के चुनाव से महज दो महीने पहले शिवराज कैबिनेट का विस्तार हो गया। क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन को साधते हुए शिवराज कैबिनेट में तीन चेहरे शामिल किए गए हैं। तीन मंत्रियों के शपथ लेने के साथ ही मंत्रिमंडल में अब 34 सदस्य हो गए हैं। चुनाव से महज 45 दिन पहले कैबिनेट एक्पेंशन क्या शिवराज सरकार की जरूरत थी या मजबूरी। क्या ये विस्तार भाजपा की सत्ता की राह को आसान करेगा? क्या मंत्रिमंडल विस्तार से कांग्रेस की चुनौती बढ़ेगी?
Shivraj New Cabinet : ये वो तीन नए चेहरे हैं, जो शिवराज के कुनबे यानी कैबिनेट में शामिल हुए हैं। इन चेहरों से बीजेपी इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव में विंध्य, महाकौशल और बुंदेलखंड की 94 सीटों को साधने की जुगत में है। तीन मंत्रियों के सहारे जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है। महज 45 दिन के लिए मंत्री बने इन चेहरों से ये उम्मीद है कि इतने काम समय में भी वे अपने क्षेत्र में पार्टी का झंडा गाड़ने में कामयाब होंगे।
चुनाव आचार संहिता लगने के महज 45 दिन पहले मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर विपक्ष हमलावर है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है कि ये मंत्रिमंडल नहीं, भ्रष्टाचार की मित्रमंडली का विस्तार है। कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा ने भी बीजेपी सरकार को घेरा है।
Shivraj New Cabinet : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष को जवाब देते हुए कह कहा है कि 75 दिन बाद भी हमारी सरकार आने वाली है। जरूरत पड़ेगी तो एक विस्तार अभी और करूंगा।
मंत्रिमंडल विस्तार करके बीजेपी सरकार ने क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन साधकर कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर कर दी है। लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि आचार संहिता लागू होने के पहले 45 दिन के 3 नए मंत्री बनाने पड़े? इसके पीछे बीजेपी का क्या राजनीतिक फायदा है? इतने कम समय में नए मंत्री क्या कर सकेंगे, क्या नहीं, सरकार रिपीट होती है तो इनके चुनाव लड़ने और दोबारा मंत्री बनने के कितने चांस हैं या फिर यह कवायद सिर्फ विधानसभा चुनाव फतह करने के लिए ही है।