Govardhan Puja 2025: गवली समाज ने निभाई सैकड़ों साल पुरानी गोवर्धन पूजा परंपरा, बच्चों को लिटाकर मांगी दुआएं
Govardhan Puja 2025: गवली समाज ने निभाई सैकड़ों साल पुरानी गोवर्धन पूजा परंपरा, बच्चों को लिटाकर मांगी दुआएं
Govardhan Puja 2025 | Photo Credit: IBC24
- शाजापुर के गवली समाज में सैकड़ों साल पुरानी गोवर्धन पूजा परंपरा जीवित है
- गोबर से पर्वत बनाकर बच्चों को लिटाने की अनूठी रस्म निभाई जाती है
- देव उठनी एकादशी पर गोबर घर ले जाकर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है
शाजापुर: Govardhan Puja 2025 दिवाली पर्व के अगले दिन पड़वा पर यूं तो हर जगह गोवर्धन पूजा की जाती है। लेकिन शहर के गवली समाज द्वारा की जाने वाली गोर्वधन पूजा अपने आप में अनूठी है। गाय के गोबर से पर्वत की आकृति बनाकर उस पर बच्चों को लेटाया जाता है। बच्चों के स्वस्थ्य रहने घर एवं घर में सुख समृद्धि की कामना के लिए गवली समाजजनों द्वारा सैंकड़ों वर्ष पुरानी पंरपरा का निर्वहन किया जा रहा है। जिला विभिन्न त्योहारों को परंपराओं के साथ हर्षोल्लास के साथ निभाने के लिए जाना जाता है। दिवाली पर्व के अगले दिन पड़वा को लेकर तो परंपरा काफी विशेष है। गवली समाजजन पड़वा को धूमधाम से मनाते हैं।
Govardhan Puja 2025 समाज की महिलाएं पड़वा के दिन सुबह एक जगह एकत्रित होकर गाय के गोबर से गोर्वधन पर्वत की अनुकृति बनाती है। जिसके बाद हर घर से खीर-पूरी और मिठाई भोग लगाने के लिए लाई जाती है। इस दौरान खास तौर पर हर घर से एक कुल्हड़ में गाय का दूध भी लाया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि यह दूध पीने से वर्ष भर व्यक्ति निरोगी रहता है। सामुहिक पूजा के बाद समाज के पुरूष हाथोंं में धानी और बताशे लेकर गोवर्धन पर्वत की सात परिक्रमा लगाते हैं। जिसके बाद बच्चों को गोर्वधन पर्वत पर लेटाने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। जिसमें एक दिन के बच्चे से लेकर युवाओं तक को गोबर से बने गोर्वधन पर्वत पर लेटाया जाता है। जिसके पीछे गवली समाज की मान्यता है कि इससे बच्चों को किसी तरह की बीमारी नहीं होती।
समाज के आत्माराम गवली, पूनमचंद गवली, हीरालाल गवली, प्रहलाद गवली, धनराज गवली बताते हैं कि परंपरा समाज में सैंकड़ों वर्षों से प्रचलित है। गोवर्धन पर्वत का बचा हुआ गोबर देव उठनी एकादशी पर समाजजन अपने-अपने घर ले जाते हैं। जिसे रसोई घर और पूजा घर में लिपा जाता है। ताकि घर में सुख समृद्घि और शांति बनी रहे। खास बात यह है कि आधुनिकता के बदलते दौर में भी समाजजन अपनी अनूठी परंपरा को बड़े ही उत्साह और आस्था के साथ निभाते हैं।

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