शह मात The Big Debate: धंसती..ढहती टूटती सड़क..आरोप बेधड़क..सियासत कड़क, सड़कों की गुणवत्ता की जवाबदेही किसकी? देखिए पूरी रिपोर्ट
शह मात The Big Debate: धंसती..ढहती टूटती सड़क..आरोप बेधड़क..सियासत कड़क, सड़कों की गुणवत्ता की जवाबदेही किसकी? देखिए पूरी रिपोर्ट
MP Politics | Photo Credit: IBC24
- प्रदेश की सड़कों की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल
- पहली ही बारिश में सड़कों की पोल खुल गई
- विपक्ष ने सड़कों की खराब हालत पर सरकार को घेरा
भोपाल: MP Politics कहीं सड़क सुरंग बन गई, कहीं सड़क की धुल गई, कहीं ऑटो तालाब बनी सड़क में पलट गया। जी हां धंसती, ढहती, टूटती सड़क, आरोप बेधड़क, सियासत कड़क। मानसून अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन मध्यप्रदेश के बड़े शहरों की सड़कें चित्त हो गई हैं। छोटे शहरों में पुल और रोड बह रहे हैं। गांवों में घुटनों भर कीचड़ से लोग गुजररहे हैं। चौतरफा यही हालात हैं, ये सच हैरान नहीं करते पर हताश जरूर करते हैं। करोड़ों का बजट, कई लेवल की मॉनिटरिंग फिर भी सड़कों की किस्मत न तब अच्छी नहीं और न अब। जिन सड़कों को बनाने में सालों लग जाते हैं, उनके ढहने के लिए बस कुछ घंटों की बारिश काफी होती है। सवाल है चेहरे बदलते हैं, पर कहानी क्यों नहीं बदलती?
MP Politics IBC24 पर इन तस्वीरों और मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर की “महल रोड” के हालात बताने के बा इस सड़क की चर्चा पूरे देश में हो रही है। ट्विटर से लेकर हर सोशल मीडिया में iBC24 की इन एक्सक्लूसिव तस्वीरों को दिखाया गया। कांग्रेस के तमाम दिग्गजों ने IBC24 पर खबर दिखाए जाने के बाद घटिया क्वालिटी की सड़क के मामले में मोहन सरकार से लेकर मंत्रियों, सांसदों और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेर रहे हैं।
पहली तस्वीर राजधानी भोपाल की, ये हाल राजधानी के हैं। ये सड़क है या तालाब कहना मुश्किल है और जरा सोचिए ये हाल राजधानी के हैं जहां से सरकार चलती है। वहां जनता का घरों से निकलना मुश्किल है। सड़क की क्वालिटी भी जरा देखिए। इस सड़क पर अगर पैर मसल दे तो इसके ऊपर जो भ्रष्टाचार का डामरीकरण किया गया उसकी पोल खुलते नज़र आ जाएगी।
अब भोपाल के बाद आपको लिए चलते हैं मिनी मुंबई, इंदौर, जहां सड़कों की बदहाली आप भी साफ देख सकते हैं। कांग्रेस नेताओं ने तो EOW पहुंच कर सड़क के खराब पैच वर्क को लेकर निगम के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग तक की है। आरोप है कि शहर में हुए सड़कों के पेच वर्क सिर्फ पांच दिन में ही उखड़ने लगे। बीते दिनों कांग्रेस ने इन सड़कों के गड्ढे में बैठकर प्रदर्शन भी किया था।
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हालात संस्कारधानी जबलपुर के भी अलग नहीं है। शहर को जलभराव से बचाने के लिए 300 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं लेकिन जिस प्रोजेक्ट पर ये खर्च हुआ वो आज तक अधूरा है और अधूरे निर्माण कार्य का खामियाजा जनता भुगत रही है। यानी बारिश ने एक बार फिर घटिया निर्माण कार्य, लेट लतीफी और सरकार – प्रशासन की इंतजामों की पोल खोल दी है। जिसपर विपक्ष हमलावर है। तारीख बदलती है, साल बदलता है, नहीं बदलते हैं तो सिर्फ हालात, जनता से वादे किए जाते हैं। दावे किए जाते हैं, लेकिन वो तमाम वादे बारिश के पानी के साथ ही धुल जाते हैं।

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