मुंबई, 24 दिसंबर (भाषा) राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे का कई वर्षों की दूरी के बाद एक साथ आना निश्चित रूप से मराठी मतदाताओं में विभाजन को रोकने में मदद करेगा, लेकिन लंबे समय से प्रतीक्षित यह गठबंधन उन्हें महत्वपूर्ण बृह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों में जीत की गारंटी नहीं देगा।
शिवसेना (उबाठा) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने आठ महीने से जारी अटकलों पर विराम लगाते हुए 15 जनवरी को होने वाले बीएमसी चुनाव के लिए बुधवार को औपचारिक रूप से दोनों दलों के बीच गठबंधन की घोषणा की।
राज ठाकरे के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि दो दल साथ रहने के लिए एकसाथ आए हैं। दोनों ने कहा कि वे ‘मराठी मानुष’ और महाराष्ट्र के हित के लिए एकजुट हुए हैं।
राज ठाकरे के 2005 में अविभाजित शिवसेना से अलग होकर अगले ही साल अपनी खुद की पार्टी बनाने के बाद, यह पहली बार है जब दोनों पार्टियों ने चुनावी गठबंधन किया है। तब से ठाकरे भाई राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं।
यह गठबंधन ऐसे समय में हुआ है जब दोनों क्षेत्रीय दल एक ऐसे राज्य में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जहां 2022 के बाद से प्रमुख पार्टियों (शिवसेना और राकांपा) में विभाजन और राजनीतिक विखंडन के साथ-साथ भाजपा का बढ़ता वर्चस्व भी देखा गया है।
शिवसेना में 2022 में उसके वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद फूट पड़ गई थी, जो अब महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं।
शिवसेना के इतिहास पर पुस्तक लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने कहा कि दोनों पार्टियों के एक साथ आने से मराठी मतों का विभाजन रूक जायेगा।
मराठी वोट इस बात के लिए एक अहम कारक है कि नगर निकाय की सत्ता किसके हाथ में होगी। बीएमसी का वार्षिक बजट 74,000 करोड़ रुपये से अधिक है, जो कुछ राज्यों के बजट से भी बड़ा है।
अकोलकर ने प्रेस वार्ता में राज और उद्धव के परिवारों के फोटो खिंचवाने का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘यह चुनाव के लिए गठबंधन की घोषणा करने के बजाय एक पारिवारिक पुनर्मिलन जैसा लग रहा था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दोनों भाइयों के एक साथ आने का मतलब यह नहीं है कि बीएमसी में (शिवसेना (उबाठा)-मनसे गठबंधन की) जीत पक्की है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मराठी मानुष किसे वोट देते हैं। मुंबई में मराठी मानुष बहुत भावुक हैं और ठाकरे बंधुओं द्वारा उठाए गए मुद्दों, विशेष रूप से मराठी भाषा के महत्व से, वे गहराई से जुड़े हुए हैं।’’
उन्होंने हालांकि चेताया कि वही भावुक मराठी मानुष ‘‘बटेंगे तो कटेंगे’’ के नारे और हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों से भी प्रभावित होकर भाजपा को वोट देते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिवसेना (उबाठा) और मनसे के बीच गठबंधन के बाद मराठी मतों का विभाजन सीमित रहेगा।
उन्होंने दलील दी कि 2017 के बीएमसी चुनावों में 20-25 वार्ड ऐसे थे जहां अविभाजित शिवसेना और उसकी तत्कालीन प्रतिद्वंद्वी मनसे के बीच मतों के बंटवारे के कारण भाजपा को फायदा हुआ था। उन्होंने कहा कि इस बार इन वार्ड में स्थिति अलग हो सकती है।
देशपांडे ने कहा कि 2019 के बाद, जब उद्धव ठाकरे ने भाजपा से संबंध तोड़कर कांग्रेस और अविभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ हाथ मिलाया था, तो उन्होंने अल्पसंख्यक मतों को आकर्षित करना शुरू कर दिया।
भाषा
देवेंद्र माधव
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