Sawan Special : बुंदेलखंड के कुंडेश्वर में विराजमान है भोलेनाथ का 5000 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग, कई रहस्यों से घिरा है ये धाम, देखें पूरी रिपोर्ट

5000 year old Swayambhu Shivling of Bholenath : बुंदेलखंड की काशी कहे जाने वाले शिव धाम कुंडेश्वर में भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग है।

Sawan Special : बुंदेलखंड के कुंडेश्वर में विराजमान है भोलेनाथ का 5000 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग, कई रहस्यों से घिरा है ये धाम, देखें पूरी रिपोर्ट

5000 year old Swayambhu Shivling of Bholenath

Modified Date: August 19, 2023 / 04:33 pm IST
Published Date: August 18, 2023 10:08 pm IST

5000 year old Swayambhu Shivling of Bholenath : टीकमगढ़। बुंदेलखंड की काशी कहे जाने वाले शिव धाम कुंडेश्वर में भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग है। यह शिवलिंग करीब 5000 साल पुराना बताया जाता है। द्वापर युग में बाणासुर की पुत्री ऊषा ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी। वर्तमान में किवदंती है कि ऊषा आज भी भगवान शिव को जल अर्पित करने आती है। मगर उन्हें कोई देख नहीं पाता है। कुण्डेश्वर स्थित देवाधिदेव महादेव आज भी शाश्वत और सत्य हैं, इसका जीता-जागता प्रमाण स्वयं प्रतिवर्ष चावल के बराबर बढ़ने वाला शिवलिंग है। समूचे उत्तर भारत में भगवान कुण्डेश्वर की विशेष मान्यता है। यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते हैं।

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कैसे अस्तित्व में आया ये शिवलिंग?

5000 year old Swayambhu Shivling of Bholenath : श्रद्धालुओं की ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर कामना पूरी होती है। नीमखेरा गांव निवासी हुकुम यादव बताते है कि कुण्डेश्वर मंदिर में प्रत्येक वर्ष बढऩे वाले शिवलिंग की हकीकत पता करने सन 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जू देव द्वितीय ने यहां पर खुदाई प्रारंभ कराई थी। उस समय खुदाई में हर तीन फीट पर एक जलहरी मिलती थी। ऐसी सात जलहरी महाराज को मिली। लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नहीं पहुंच सके। इसके बाद भगवान ने उन्हें स्वप्र दिया और यह खुदाई बंद कराई गई।

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मंदिर के इतिहास से जुड़ी पौराणिक कथा

मंदिर के इतिहास से पौराणिक कथा जुड़ी है। पौराणिक काल में द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुण्ड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में दर्शन दिए थे और उनकी प्रार्थना पर ही कालांतर में भगवान यहां पर प्रकट हुए हैं। कहते है आज भी वाणासुर की पुत्री ऊषा यहां पर पूजा करने के लिए आती है।

भगवान भोलेनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पंड़ित जमुना प्रसाद तिवारी बताते है कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की एक महिला पहाड़ी पर रहती थी। पहाड़ी पर बनी ओखली में एक दिन वह धान कूट रही थी। उसी समय ओखली से रक्त निकलना शुरू हुआ तो वह घबरा गई। ओखली को मिट्टी के कुंडे से ढककर वह नीचे आई और लोगों को यह घटना बताई। लोगों ने इसकी सूचना तत्कालीन महाराजा राजा मदन वर्मन को दी। राजा ने अपने सिपाहियों के साथ आकर इस स्थल का निरीक्षण किया तो यहां पर शिवलिंग दिखाई दिया। इसके बाद राजा वर्मन ने यहां पर पूरे दरबार की स्थापना कराई। यहां पर विराजे नंदी पर आज भी संवत 1204 अंकित है। इसीलिए कुंडेश्वर का प्राचीन नाम कुंडा देव भी है।

 

(टीकमगढ़ से IBC24 शैलेंद्र द्विवेदी की खास रिपोर्ट)

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लेखक के बारे में

Shyam Bihari Dwivedi, Content Writter in IBC24 Bhopal, DOB- 12-04-2000 Collage- RDVV Jabalpur Degree- BA Mass Communication Exprince- 5 Years