Reported By: Amitabh Bhattacharya
,Charak Puja 2024: पखांजुर। कहते हैं भारत रहस्यों व आश्चर्यों का देश है। यहां धर्म के नाम पर आज भी कई ऐसी विधाएं और परम्पराए जिंदा है, जो अनूठी व काफी अद्भुत है। वहीं, पश्चिम बंगाल में मनाया जाने वाली चरक पूजा पखांजुर क्षेत्र में आज भी बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है। वहीं, पखांजुर क्षेत्र में चैत्र माह के एक महीने तक बंगाली समुदाय के लोग गेरुआ वस्त्र धारण कर बम भोले पर्व मनाते है। चैत्र महीना पूरा होने के बाद खजूर भांगा की रस्म अदा की जाती है, जिसमें छिंद पेड़ पर साधक नंगे पांव चढ़ते है तथा खजूर (छिंद फल) तोड़कर नीचे फेंकते है और इसे प्रसाद के रूप में गांव को लोग ग्रहण करते है।
सुख-शांति के लिए की जाती है चरक पूजा
खजूर भांगा के दूसरे दिन चरक पूजा की जाती है। इसमें चरक के पेड़ के तने को काट कर तराजू नुमा आकृति बनाते है और साधको के पीठ पर हुका फंसा कर तेजी से घुमाया जाता है। देखने में तो यह झूला व तराजू के समान दिखता है परंतु मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार और समाज मे सुख-शांति आती है। इस पूजा को नील पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस पूजा के विषय में यहां के लोगों का मानना है कि इस पूजा के बाद भगवान सारे दुखों को दूर करके समृद्धि, यश वैभव और खुशखाली देते हैं। वास्तव में इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को संतुष्ट करना है।
इसी दिन से साल की शुरुवात
आश्चर्य की बात है कि युवको के पीठ पर हुक फंसाने व छड़ को मुख के आरपार करने के दौरान और बाद में भी युवकों को दर्द नहीं होता। इस दौरान क्षेत्र के लोग अलग-अलग गावों में जाकर तेल, नमक, शहद, चावल और पैसे लेके आते हैं और अंत में सभी का इस्तेमाल भगवान शिव को सजाने के लिए किया जाता है। चैत्र पूजा के दूसरे दिन बंगला कलेंडर अनुसार बैसाख का पहला दिन अर्थात इसी दिन से साल की शुरुवात होती है। इस कार्यक्रम को देखने क्षेत्रभर के लगभग पांच हजार से अधिक की संख्या में ग्रामीणजन पहुंचे थे। हर साल पूजा के रूप में अलग-अलग स्थानों पर यह कार्यक्रम किया जाता है।
क्या है चरक पेड़
चरक पेड़ के रूप में एक सखुआ का खंभा लगाया जाता है।उसे खड़ा करने के पूर्व कई तांत्रिक पूजा की जाती है।पूजा समाप्त होने के बाद खंभे के उपरी हिस्से में घूमने वाला पहिया लगाया जाता है।उस पहिए में रस्सी में लगे लोहे के हुक से अनुयायियों को लटकाया जाता है।गौर करने वाली बात यह कि यह हुक अनुयायी की पीठ में लगाया जाता है और इसे लगाने के बाद उसे अनुयायी को कई राउंड झूले की चरखी की भांति घुमाया जाता है।माना जाता है कि जिस समय चरक पेड़ लगाया जाता है,उस पूजा में कोई रुकावट आ जाए तो उसमें किसी भी अनुयायी की जान जा सकती है।चरक के पेड़ से लेकर घूमने वाले क्षेत्र को सिद्ध जल से घेरा जाता है।