Home » Religion » Natraja Apasmara Purusha: Who is the figure crushed under Lord Nataraja's feet? Learn his name and the mythological story associated with Nataraja!
Natraja Apasmara Purusha: भगवान नटराज की मूर्ति में उन्होंने पैरो तले किसे दबाया है? जान लीजिये उसका नाम और नटराज से जुड़ी पौराणिक कथा!
भगवान शिव के कई अवतार हैं उन्हीं में से एक है "नटराज" रूप। "नटराज", भारतीय शास्त्रीय नृत्य का आधार है जो कि चिदंबरम जैसे मंदिरों में जीवंत पूजा का हिस्सा है। किन्तु सवाल यह है कि भगवान नटराज ने अपने पैरो तले किसे दबाया है? आइये जानें इसका रहस्य..
Publish Date - December 22, 2025 / 07:03 PM IST,
Updated On - December 22, 2025 / 07:05 PM IST
Natraja Apasmara Purusha/Image Source: IBC24
HIGHLIGHTS
भगवान नटराज के पैरो के नीचे कौन दबा है?
हिन्दू पौराणिक कथाओं का अनोखा रहस्य!
Natraja Apasmara Purusha: हिन्दू धर्म में भगवान शिव का नटराज रूप भारतीय कलाओं में सबसे प्रतिष्ठित, उत्कृष्ट अभिव्यक्ति में से एक है। “नटराज”, जिसका अर्थ है “नृत्य का राजा”, भगवान शिव का वह रूप, जिसमें वह आनंद नृत्य कर रहे हैं। यह रूप न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि जीवन के चक्रीय स्वरूप और आध्यात्मिक जागृति का भी प्रतीक है। भगवान नटराज की मूर्ति देखकर हर किसी के मन में सबसे पहले यह सवाल उठता है कि भगवान नटराज के पैरो तले कौन दबा है? तो आइये, आपको बताएं उसका नाम और इसका रहस्य..
नटराज के पैरो तले जो दबा हुआ है वह है “अपस्मार पुरुष”, यह एक बौना राक्षस है जो कि अज्ञान, अंधकार, अविद्या यहाँ तक की मिर्गी (Epilepsi) का प्रतीक है भगवान शिव नटराज रूप में अपस्मार पर नृत्य कर के अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं परन्तु उसे मारते नहीं हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, अपस्मार को अमरता का वरदान प्राप्त था, इसलिए भगवान शिव भी उसे नहीं मार सकते थे। अपस्मार, वह नकारात्मक अवस्था है जो लोगों को सत्य और ज्ञान से दूर रखता है इसलिए, भगवान नटराज उसे अपने पैरो तले दबाकर रखते हैं जो कि यह सन्देश देता है कि अज्ञान को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता, बल्कि ज्ञान और साधना से लगातार दबाया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार, अपस्मार केवल एक राक्षस ही नहीं, बल्कि मनुष्यों के बीच की बुराइयों और कमज़ोरियों का प्रतीक हैं। यदि अपस्मार मुक्त हो जाए, तो मानवता अज्ञान में डूब जाएगी और यदि अपस्मार मर जाए, तो विकास रुक जायेगा।
नटराज, भगवान शिव का नृत्य रूप है जो “आनंद” तांडव नृत्य करता है लेकिन आप सोच रहे होंगे कि भगवान नटराज से इसका क्या संबंध है? तो आपको बता दें कि अपस्मार को पैरो के नीचे दबाकर, उसके ऊपर खड़े होकर नृत्य करना यह दर्शाता है कि भगवान शिव का नृत्य ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संरक्षण तथा विनाश को दर्शाता है, जबकि अपस्मार को अपने पैरो तले दबाना, अज्ञान पर ज्ञान की विजय का संकेत है।
भगवान नटराज के ऊपरी दाहिने हाथ में है “डमरू”, जो कि सृष्टि की पहली ध्वनि “ॐ का प्रतीक” है और जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति को दर्शाता है।
ऊपरी बाए हाथ में “अग्नि” विनाश का प्रतीक है जो पुराने को नष्ट कर नए मार्ग प्रशस्त करती है।
निचला दाहिना हाथ, अभय मुद्रा में है रक्षा और निर्भयता का संकेत देता है।
उठे हुए पैर की ओर इशारा करते हुए निचला बायां हाथ, मोक्ष का प्रतीक है।
उठा हुआ पैर की और इशारा करता हुआ “गज हस्त” मुक्ति और अनुग्रह को दर्शाता है।
अपस्मार पर खड़ा पैर, अज्ञान पर विजय का प्रतीक है।
भगवान नटराज के चारों ओर अग्नि का घेरा ब्रह्मांड की निरंतर गति, समय के चक्र और ऊर्जा का प्रतीक है। जो हमें सिखाता है कि जब तक मनुष्य अपने अंदर के अभिमान, अहंकार, अज्ञान को नहीं दबाता तब तक वह आत्मिक शांति का अनुभव नहीं कर सकता।
Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।
अपस्मार पुरुष (मुयलका) नाम का बौना राक्षस दबा हुआ है, जो अज्ञान, अहंकार और विस्मृति का प्रतीक है। शिव उसे मारते नहीं, बल्कि दबाकर रखते हैं ताकि ज्ञान की प्रक्रिया जारी रहे।
नटराज की मुद्रा में डमरू और अग्नि का क्या अर्थ है?
डमरू सृष्टि की प्रथम ध्वनि (ओम) और निर्माण का प्रतीक है, जबकि अग्नि संहार और पुराने का विनाश दर्शाती है। यह जीवन चक्र के निर्माण-संहार को दिखाता है।
अपस्मार पुरुष को क्यों नहीं मारते भगवान शिव?
क्योंकि अपस्मार को अमरता का वरदान था। यदि वह मर जाए, तो मानवता पूरी तरह अज्ञानी हो जाएगी और आध्यात्मिक विकास रुक जाएगा। अज्ञान को लगातार दबाना पड़ता है, नष्ट नहीं किया जा सकता।
CERN में नटराज की मूर्ति क्यों स्थापित है?
क्योंकि नटराज का ब्रह्मांडीय नृत्य कण भौतिकी में कणों की निरंतर गति और ऊर्जा रूपांतरण से मिलता-जुलता है। यह विज्ञान और हिंदू दर्शन के संगम का प्रतीक है।