भारत और हिंदू धर्म की ये परंपराएं जिनकी दुनिया भी है कायल, जानिए वैज्ञानिक महत्व

भारत और हिंदू धर्म की ये परंपराएं जिनकी दुनिया भी है कायल, जानिए वैज्ञानिक महत्व

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  • Publish Date - April 15, 2020 / 01:25 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:46 PM IST

रायपुर। हिन्दू धर्म में वैसे तो अनगिनत परंपराएं हैं जिनका कई लोग पालन करते हैं, यह परंपराएं अलंकार की तरह होती हैं, जो न केवल हिन्दू धर्म बल्कि भारत देश के प्रति दुनिया को आकर्षि‍त करती हैं। लेकिन यह परंपराएं निरर्थक या अनावश्यक नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी छिपे होते हैं। जानिए ऐसी ही कुछ परंपराओं और उनके पीछे के वैज्ञानिक कारण क्या हैं।

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1/ माथे पर तिलक लगाना – हिन्दू परंपरा अनुसार विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में माथे पर तिलक लगाया जाता है। माथे पर तिलक लगाना बहुत शुभ माना जाता है और इसके लिए खास तौर से कुमकुम अथवा सिंदूर का उपयोग किया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए तो कुमकुम सुहाग और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में जीवन का अभि‍न्न अंग होता है। लेकिन इसके पीछे सशक्त वैज्ञानिक कारण भी है। वैज्ञानिक तर्क के अनुसार मानव शरीर में आंखों के मध्य से लेकर माथे तक एक नस होती है। जब भी माथे पर तिलक या कुमकुम लगाया जाता है, तो उस नस पर दबाव पड़ता है जिससे वह अधि‍क साक्रिय हो जाती है, और पूरे चेहरे की मांसपेशि‍यों तक रक्तसंचार बेहतर तरीके से होता है। इससे उर्जा का संचार होता है और सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।

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2/ हाथ जोड़ना या नमस्ते करना – हमारे यहां किसी से मिलते समय या अभि‍वादन करते समय हाथ जोड़कर प्रणाम किया जाता है। इसे नमस्कार या नमस्ते करना कहते हैं जो सम्मान का प्रतीक होता है। लेकिन अभि‍वादन का यह तरीका भी वैज्ञानिक तर्कसंगत है।

हाथ जोड़कर अभि‍वादन करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क है कि जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उन पर दबाव पड़ता है। इस तरह से यह दबाव एक्यूप्रेशर का काम करता है। एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार यह दबाव आंखों, कानों और दिमाग के लिए प्रभावकारी होता है। इस तरह से अभि‍वादन कर हम व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकते हैं। इसके साथ ही हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़ने से हम कई तरह के संक्रमण से बच जाते हैं।

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3/ चरण स्पर्श – हिन्दू धर्म में ईश्वर से लेकर बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर आशर्वाद लेने की परंपरा है, जिसे चरण स्पर्श करना कहते हैं। हर हिन्दू परिवार में संस्कार के रूप में बड़ों के पैर छूना सिखाया जाता है। दरअसल पैर छूना या चरण स्पर्श करना केवल झुककर अपनी कमर दुखाना नहीं है, बल्कि इसका संबंध ऊर्जा से है। वैज्ञानिक तर्क के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क से लेकर पैरों तक लगातार उर्जा का संचार होता है। इसे कॉस्मिक ऊर्जा कहा जाता है। इस तरह से जब हम किसी व्यक्ति के पैर छूते हैं, तो हम उससे ऊर्जा ले रहे होते हैं। सामने वाले के पैरों से ऊर्जा का प्रवाह हाथों के जरिए हमारे शरीर में होता है।