Varanasi ki Kahani: वाराणसी का ऐसा रहस्य जो आज तक कोई नहीं समझ पाया, जानिए प्रलय में भी क्यों नहीं डूबती काशी? त्रिशूल पर टिकी अमर नगरी की अविश्वसनीय कथा

वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, जो कि भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर बसा एक पवित्र शहर है। मान्यता है कि यह विश्व का सबसे प्राचीन शहर है जहां मृत्यु पाने वाले को होती है मोक्ष की प्राप्ति..

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  • Publish Date - November 17, 2025 / 01:47 PM IST,
    Updated On - November 17, 2025 / 01:54 PM IST

Varanasi ki Kahani

HIGHLIGHTS
  • शिव का हृदय है काशी : त्रिशूल पर टिकी अविनाशी नगरी।
  • वाराणसी: "शिव के त्रिशूल पर टिकी वह अविनाशी नगरी, जहां मृत्यु भी बनती है मोक्ष का द्वार"।

Varanasi ki Kahani: वाराणसी, जिसे काशी, बनारस नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर बसा एक ऐसा पवित्र शहर है, जो समय की सीमाओं को लांघ चुका है। यह हिंदू धर्म का हृदयस्थल है, जहां मृत्यु भी मोक्ष का द्वार बन जाती है। यहाँ पर संकरी गलियों में गूंजती घंटियां, घाटों पर बहती गंगा की लहरें, शाम की आरती की रोशनी और सुबह के सूर्योदय की किरणें, सब मिलकर एक ऐसा दृश्य बनाते हैं जो सीधे आत्मा को छूती है।

Varanasi ki Kahani: इसे “वाराणसी” क्यों कहा जाता है?

वाराणसी शहर का नाम दो नदियों, वरुणा (उत्तर में) और असी (दक्षिण में) के बीच बसे होने के कारण इसका नाम “वाराणसी” पड़ा, जिसका अर्थ है वरुणा और असि के बीच की ‘ज़मीन’। काशी को भगवान शिव की नगरी माना गया है। यहाँ मंदिरों की घंटियां निरंतर बजती रहती हैं। यह न केवल धार्मिक महत्व का केंद्र है, बल्कि संस्कृति, कला, संगीत और शिक्षा का भी जीता-जागता का स्रोत है (जैसे कि बनारसी साड़ी, संगीत-शहनाई) आदि। आईये जानतें हैं वाराणसी (काशी) की कथा..

Varanasi ki Kahani: वाराणसी की पौराणिक कथा

वाराणसी की उत्पत्ति भगवान शिव से जुड़ी है। काशी शिव की सबसे प्रिय नगरी है। यहां शिव स्वयं काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं। वाराणसी (काशी) की यह प्रसिद्ध कथा मुख्य रूप से स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णित है। पुराणों में कहा गया है कि “काशीं विश्वनाथस्य हृदयं” (काशी विश्वनाथ का हृदय है)। यह कथा शहर की पवित्रता, अमरता और भगवान शिव के आलौकिक प्रेम को दर्शाती है। इसे अविमुक्त क्षेत्र की उत्पत्ति की कथा भी कहा जाता है।
पौराणिक कथानुसार, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान शिव ने यहां तपस्या की। इस स्थान पर शिव ने स्वयं निवास किया। कहा जाता है कि सृष्टि के आदि काल में, जब ब्रह्मा ने पुरे विश्व की रचना की, तब भगवान शिव ने एक विशेष क्षेत्र की कल्पना की, जहां आत्माएं मोक्ष प्राप्त कर सकें। तब भगवान शिव ने पार्वती से कहा: “हे पार्वती! मैं एक ऐसी नगरी बसाऊंगा जो कभी नष्ट न हो, जहां मृत्यु भी मुक्ति का द्वार बने।”

शिव ने अपना त्रिशूल उठाया और उस पर एक दिव्य अविमुक्त क्षेत्र को स्थापित किया, यह क्षेत्र था काशी (वाराणसी)। शिव ने इसे अपने त्रिशूल के मध्य भाग पर टिका दिया, ताकि प्रलय (विश्व विनाश) के समय भी यह सुरक्षित रहे। प्रलय के समय, जब समस्त विश्व जलमग्न हो जाता है, तब भी शिव अपने त्रिशूल पर काशी को उठा लेते हैं।

यहां गंगा नदी का प्रवाह उत्तरवाहिनी है, जो इसे और अधिक पवित्र बनाता है। मान्यता है कि इस भूमि पर मृत्यु प्राप्त करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, वाराणसी को ‘मोक्ष नगरी’ भी कहा जाता है

वाराणसी की कहानी जीवन-मृत्यु के चक्र की है, जहां मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताएं मौत को जीवन का हिस्सा बनाती हैं, और गंगा आरती हर शाम मृत्यु को उत्सव में बदल देती है। यह शहर कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष का साक्षात दर्शन है।

Disclaimer:- उपरोक्त लेख में उल्लेखित सभी जानकारियाँ प्रचलित मान्यताओं और धर्म ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in लेख में उल्लेखित किसी भी जानकारी की प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है। हमारा उद्देश्य केवल सूचना पँहुचाना है।

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वाराणसी का नाम “वाराणसी” कैसे पड़ा?

शहर दो नदियों – उत्तर में वरुणा और दक्षिण में असी – के बीच बसा है। वरुणा + असी = वारणासी → वाराणसी। यही इसका सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक नाम है।

शिव के त्रिशूल पर काशी टिकी होने की कथा क्या है?

प्रलय के समय जब सारा विश्व जलमग्न हो जाता है, तब भगवान शिव काशी को अपने त्रिशूल की नोक पर उठा लेते हैं। इसलिए इसे “अविमुक्त क्षेत्र” कहते हैं – जिसे शिव ने कभी त्यागा नहीं।

काशी में मरने से मोक्ष क्यों मिलता है?

स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं मणिकर्णिका घाट पर विराजमान हैं और मृत व्यक्ति के कान में तारक मंत्र (राम-नाम) फूंककर उसे मुक्ति देते हैं। इसलिए काशी को “महाश्मशान” और “मोक्षदायिनी” कहा जाता है।