गौठान से बदली गौवंश एवं गौ पालकों की तकदीर, आजीविका सृजन एवं जीवनयापन का सशक्त माध्यम बन रहे गौठान

fate of cow dynasty and cow herders changed from Gauthan गौठानों से जुड़ी महिला समूहों के लिए निरंतर बेहतर काम कर रही है।

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  • Publish Date - May 25, 2023 / 05:19 PM IST,
    Updated On - May 27, 2023 / 02:05 PM IST

fate of cow dynasty and cow herders changed from Gauthan: रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौठान समितियों, पशुपालक ग्रामीणों और गौठानों से जुड़ी महिला समूहों के लिए निरंतर बेहतर काम कर रही है। भूपेश सरकार ने गौठान समितियों और महिला समूहों को रोजगार का अवसर दिया है। गोधन न्याय योजना के तहत पशुपालक ग्रामीणों, गौठानों से जुड़ी महिला समूहों और गौठान समितियों को 5 करोड़ 32 लाख रुपए की राशि ऑनलाइन जारी किया। गोधन न्याय योजना के तहत राज्य में अब तक गोबर विक्रेता पशुपालक किसानों सहित गौठान समितियों एवं महिला स्व-सहायता समूहों को लगभग 356 करोड़ 14 लाख रुपए का भुगतान किया जा चुका है, जिसमें 18 करोड़ रुपए की बोनस राशि भी शामिल है। गोधन न्याय योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य के गौठानों में 2 रुपए किलो की दर से गोबर की खरीदी की जा रही है।

गौठान क्या है ?

खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन चुका है। पशुओं को पालने व देखरेख करने के लिए प्रयुक्त घर गौशाला कहलाता है। जिसे छत्तीसगढ़ में गौठान कहते हैं। यहां आवारा पशुओं के लिए एक शेड का निर्माण की व्यवस्था है। ये एक तरह से गौवंशों के लिये साफ और स्वच्छ आवास की व्यवस्था होता है। जहां बीमार, घायलों और आवारा पशुओं की देखभाल की जाती है। गायों के बेहतर स्वास्थ्य और अच्छी मात्रा में दूध उत्पादन के लिये समय पर चारा, दाना, संतुलित पशु आहार दिया जाता है। इनकी देखभाल के लिए गौठान में श्रमिक या मजदूर रहते हैं, जो समय पर गायों के खान-पान, नहाने, चराने, दूध उत्पादन और चिकित्सकीय जांच कर सकें।

गौवंशों के लिए गौठान में उपल्बध सुविधाएं

धान पैरा, भूसा, हरा चारा की व्यवस्था सामान्य तौर पर ग्राम पंचायत द्वारा कृषकों की सहयोग से की जाती है। चारा व्यवस्था हेतु ग्राम पंचायत के पास उपलब्ध मूलभूत राशि अथवा इसके लिए सेवा शुल्क लगाकर की जाती है। ग्राम पंचायत द्वारा स्वयं सेवी संस्थाओं, सी.एस.आर. मद तथा दानदाताओं से सहायता ली जाती है। फसल कटाई के बाद फसल अपशिष्ट (पुआल) खेतों में यथावत छोड़ दिए जाते हैं, उन्हें एकत्र करवाकर गौठान में चारे के रूप में उपयोग हेतु लाया जाता है।

पशुमालिकों द्वारा स्वेच्छा से भी अनुदान/योगदान भी दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, कम्पोस्ट खाद वर्मी कम्पोस्ट खाद, बायोगैस इत्यादि से प्राप्त आय से भी चारे की व्यवस्था की जाती है। चारे की परिवहन की व्यवस्था गौठान संरक्षण संवर्धन समिति द्वारा की जाती है। हर गौठान में पंचायत द्वारा पूर्व में लिए गए निर्णय अनुसार साथ में लगी हुई लगभग 10 एकड़ भूमि का चिन्हांकन किया गया। उस पर चारा विकास का कार्यक्रम लिया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रति पशु प्रतिदिन कम से कम 5 किलोग्राम चारे के मान से व्यवस्था किया जाना उपयोगी होता है। संधारित धान पैरा के पोषक मूल्य में वृद्धि हेतु साइलेज तैयार करना तथा यूरिया से उपचार की तकनीक के उपयोग हेतु विभाग द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। गौठान में चारे का संधारण चारा शेड में किया जाता है। चारा शेड में चैफ कटर की भी व्यवस्था की जाती है। जिससे चारे का समुचित उपयोग हो सके।

गौठान के लिए आवश्यक मानव संसाधन की व्यवस्था

गौठान में पशुओं की देखभाल, गौठान साफ-सफाई, संसाधन उपयोग व रख-रखाव के लिए एक चरवाहे की एक उचित व्यवस्था की जाती है। चरवाहा, उपचार, बधियाकरण एवं कृत्रिम गर्भाधान कार्य हेतु पशुओं को चिन्हांकित करने, ट्रेविस तक लाने, पशु नियंत्रण करने व कार्य संपादन में भी सहयोग करता है। चरवाहा पशु चारे शेड से पशु चारे की नांद तक समयबद्ध चारा पूर्ति सुनिश्चित करता है। इसी प्रकार सौर ऊर्जा से संचालित ट्यूबवेल का रख-रखाव व पशुओं के पानी की टंकी में पानी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने जुलाई 2020 में महत्वकांक्षी सुराजी गांव योजना के तहत गौठान और गोधन योजना की शुरुआत की। इसमें गरुवा, घुरुवा मछली पालन, रीपा गौठान आदि बहुत महत्व रखते हैं।

गरुवा –

ग्रामीण जीवन का बड़ा आधार पशुधन हैं। नई योजना के तहत हर गांव में मवेशियों के लिए 3 एकड़ ज़मीन की पहचान की जा रही है। इसे ‘गौठान’ नाम दिया गया है। इन गौठानों में न सिर्फ दिन में पशुओं के रहने की व्यवस्था की गई बल्कि ये उनके लिए ‘डे-केयर सेंटर’ का भी काम होता है। यहां दूध जमा करने की भी सुविकी तरह काम कर रही है। ये जगह किसी ऊंची जगह पर बनाई गई। इसमें बीमार पशुओं के लिए शेड, चारे के लिए शेड, और पीने के पानी की टंकी की भी व्यवस्था की गई है। गौठान में बंधियाकरण और नस्ल सुधार धा है। इन गौठानों का फायदा ये है कि पशु एक जगह सुरक्षित रहेंगे और आसपास की फ़सलों भी बर्बादी नहीं होंगी। इस योजना से जानवरों के नस्ल सुधार से दूध का उत्पादन भी बढ़ेगा। ग्रामीण व्यवस्था में गरुआ के तहत पशुओं के लिए ये व्यवस्था पूरे गांव के लिए बड़े फायदे की है।

घुरुवा –

गौठान में ही सामुदायिक बायो गैस प्लांट और कम्पोस्ट यूनिट बनाने की योजना है। इस योजना के तहत गांव को रसोई गैस की सुविधा और खेतों को जैविक खाद का लाभ मिलता है। इस योजना में कम लागत में बेहतर फसल का उत्पादन होता है। गांव में चारागाह विकास पर भी जोर दिया जा रहा है। घुरुवा को आधार बना कर घर-घर में बायोगैस प्लांट लगाने की ये योजना स्थानीय युवाओं को रोज़गार उपलब्ध कराने की है। गोबर गैस प्लान्ट और कम्पोस्ट इकाईयां बनाने और चलाने के ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार की योजना है कि हर गांव में लगभगग 10 युवाओं को इसकी ट्रेनिंग दी जा रही है। इस ट्रेनिंग को पाने से करीब 2 लाख युवाओं को गांवों में ही रोजगार का अवसर मिल रहा है।

रीपा गौठान

प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना के तहत गांव-गांव में निर्मित गौठान ग्रामीण औद्योगिक केन्द्र (रीपा) के रूप में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन गौठानों में संचालित आजीविका गतिविधियों से ग्रामीणों को उनके गांव में ही रोजगार मिल रहा है और रोजगार मिलने से महिला समूह आर्थिक रूप से सशक्त होकर आगे बढ़ रही हैं। आज महिलाएं इन गौठानों के माध्यम से विभिन्न गतिविधियों से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही है। इस रीपा गौठान में जहां गोबर से जैविक खाद बनाने के साथ ही विभिन्न गतिविधियां संचालित की जा रही हैं वहीं सामुदायिक बाड़ी, मोटर ड्राइविंग यूनिट, मुर्गी-बकरी पालन, तेल प्रसंस्करण यूनिट, आटा मिल, पॉपकोन मशीन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, मेडिकल वेस्ट डिस्पोज सहित अन्य गतिविधियों के माध्यम से भी रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।

गौठान से महिलाओं को मिल रहा रोजगार के अवसर

प्रदेश के गौठान आजीविका मूलक गतिविधियों के केंद्र बनकर उभर रहे हैं इससे महिला स्व-सहायता समूहों को रोजगार मिल रहा है। गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट निर्माण, मुर्गी पालन, मछली पालन, उद्यानिकी फसलों के साथ-साथ अब मसाला, साबुन निर्माण, तेल पेराई जैसी इकाईयां स्थापित कर रोजगार के अवसर सृजित किये जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रदेशव्यापी भेंट-मुलाकात के दौरान दिए गए निर्देशों और घोषणाओं पर लगातार अमल हो रहा है और आमजन इससे सीधे लाभान्वित हो रहे हैं। इसी क्रम में मुख्यमंत्री के निर्देश पर जशपुर जिले के नन्हेसर और पंडरापाठ गौठानों में तेल पेराई यूनिट लगाई गई है। जिला खनिज न्यास मद लगा यह यूनिट स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए आजीविका का साधन बन गया है। दोनों गौठानों में कार्यरत स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने तेल मिल मिलने पर मुख्यमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया है।

नन्हेसर गौठान की लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की महिलाएं बताती हैं कि विभिन्न आजीविकामूलक गतिविधियां गौठान में पहले से ही संचालित की जा रही थी और अब तेल मिल मिलने से महिलाएं काफी खुश हैं। नन्हेसर गौठान की महिलाओं ने यह भी बताया कि अब तक वे 120 लीटर तेल पेराई कर चुकी है, जिसे 200 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचकर उन्हें 24 हज़ार रुपए की आमदनी हुई है। साथ ही खली का विक्रय कर 9 हजार रुपये मिले हैं।

बिजली, प्राकृतिक पेंट एवं तेल मिल की शुरूआत

fate of cow dynasty and cow herders: गोबर से बिजली एवं प्राकृतिक पेंट तैयार किया जा रहा है। गौठानों में क्रय गोबर से विद्युत उत्पादन की शुरूआत की जा चुकी है। गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए कुमारप्पा नेशनल पेपर इंस्टिट्यूट जयपुर, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय भारत सरकार के खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड एवं छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के मध्य एमओयू हो चुका है। छत्तीसगढ़ सरकार की पहल पर गौठानों में दाल मिलों एवं तेल मिलों की स्थापना की जा रही है। प्रथम चरण में 197 गौठानों में दाल मिल तथा 161 गौठानों में तेल मिल की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

रायगढ़ जिले में सबसे ज्यादा 279 गौठान स्वावलंबी हुए है। राजनांदगांव जिला प्रदेश में दूसरे स्थान है, वहां 221 और तीसरे क्रम पर जांजगीर-चांपा जिला में 190 गोठान स्वावलंबी हुए हैं। गोबर से विद्युत उत्पादन की शुरुआत रायपुर, दुर्ग, बेमेतरा जिले के गौठानों में हो चुकी हैं। गोबर से प्राकृतिक पेंट और पुट्टी बनाने के लिए राज्य के 75 चयनित गौठानों में मशीनें लगाई जा रही हैं। राज्य के 227 गौठानों में तेल मिल और 251 गौठानों में दाल मिल स्थापना का काम चल रहा हैं।

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