Shayari in Hindi
Shayari in Hindi : अक्सर लोग अपनों से अपने दिल की बात शब्दों में डायरेक्ट नहीं कह पाते ऐसे में जरूरी है कि वे अपनों से अपने दिल की बात शायरी में अभिव्यक्त करें जिससे उनकी बात भी पूरी हो जाए और सामने वाले को इसका अहसास भी हो जाए कि उसके लिए ही यह बात कही जा रही है। तो ऐसे मौके के लिए हम आपको कुछ शायरी लेकर आए हैं …
बदल जाओ वक्त के साथ
बदल जाओ वक्त के साथ
या फिर वक्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखो
समंदर को गुमान!
सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है,
उधर ही ले चलो कश्ती जहां तूफान आया है।
पहले ही चल दिए आंसू
लिखना था कि
खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,
मगर कमबख्त…
आंसू हैं कि कलम से
पहले ही चल दिए।
भटक रहा था वो
तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो,
दिल मेरा था और धड़क रहा था वो।
प्यार का ताल्लुक भी अजीब होता है,
आंसू मेरे थे और सिसक रहा था वो।
शिकवा-ए-गम किससे कहें
अब जानेमन तू तो नहीं,
शिकवा -ए-गम किससे कहें
या चुप हें या रो पड़ें,
किस्सा-ए-गम किससे कहें।
मस्त शायरी
जो दिल के करीब थे ,वो जबसे दुश्मन हो गए
जमाने में हुए चर्चे ,हम मशहूर हो गए
शायरी
अब काश मेरे दर्द की कोई दवा न हो
बढ़ता ही जाये ये तो मुसल्सल शिफ़ा न हो
बाग़ों में देखूं टूटे हुए बर्ग ओ बार ही
मेरी नजर बहार की फिर आशना न हो
ये कैसी रिहाई?
सिर्फ एक सफ़ाह
पलटकर उसने,
बीती बातों की दुहाई दी है।
फिर वहीं लौट के जाना होगा,
यार ने कैसी
रिहाई दी है।
-गुलज़ार
बेकार ही खुल गया
बैठे-बिठाए हाल-ए-दिल-ज़ार खुल गया
मैं आज उसके सामने बैठकर बेकार खुल गया। -मुनव्वर राणा
वो दिल नहीं है
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं है, वो दिल नहीं है, दिल नहीं है, दिल नहीं है।
मैं फूंक देना चाहता हूं
बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूं…
तुम ज़माने के हो
तुम ज़माने के हो हमारे सिवाय
हम किसी के नहीं, तुम्हारे हैं
वो परिंदा गुरूर नहीं करता
वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूंढता है
कोई राय न बनाना
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी…!
आंसू
एक आंसू भी
हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं
आंखों का समुंदर होना
-मुनव्वर राणा
तुझसे गिला नहीं
मैं तो इस वास्ते चुप हूं कि तमाशा न बने
और तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं!
उठता नहीं धुआं
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआं।
-गुलजार
तनहाई ने थामा हाथ
छोड़ दिया मैंने अपने दिल का साथ,
प्यार ने थाम लिया है तनहाई का हाथ।
इतना तो गुरूर है मुझे आज
भले अहसासों ने छोड़ा, तनहाई न होगी दगाबाज़।
दोबारा मोहब्बत!
तमु लौटकर आने की तकलीफ दोबारा मत करना,
हम एक बार की गई मोहब्बत दोबारा नहीं करते!
वो लहू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।
-मिर्जा ग़ालिब
रिश्ते तरसते हैं जगह को
ख्वाहिशों से भरा पड़ा है मेरा घर इस कदर
रिश्ते जरा-सी जगह को तरसते हैं।
-गुलज़ार
शिकायत हवा से
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से,
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है
उसकी ख्वाहिश किसे है
मिल सके जो आसानी से
उसकी ख्वाहिश किसे है
जिद्द तो उसकी है जो
मुकद्दर में लिखा ही नहीं है।
मरने के लिए मोहब्बत!
परवाने को शमा पर जलकर
कुछ तो मिलता होगा
यूं ही मरने के लिए कोई
मोहब्बत नहीं करता…
दुश्मन भी मेरे मुरीद
दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद, वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं।
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर, रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं।
आंखों को पत्थर कर दे
या खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे।
मेरी खामोशी पर हैरान क्यों
मुझे खामोश देखकर इतना
क्यों हैरान होते हो ऐ दोस्तो
कुछ नहीं हुआ है बस
भरोसा करके धोखा खाया है!
सितारों तुम तो सो जाओ
हमें भी नींद आ जाएगी, हम भी सो ही जाएंगे
अभी कुछ बेकरारी है, सितारों तुम तो सो जाओ…।
किससे करूं शिकवा?
शिकवा करूं तो किससे करूं, ये अपना मुकद्दर है अपनी ही लकीरें हैं।
ना समझ मुझे!
ना कर तू इतनी कोशिशें मेरे दर्द को समझने की,
पहले इश्क कर, फिर चोट खा, फिर लिख,दवा मेरे दर्द की।
हाल-ए-दिल
हाल-ए-दिल नहीं मालूम इस कदर यानी
हमने बार-हा ढूंढा तुमने बार-हा पाया।
-मिर्ज़ा ग़ालिब
कैसी आदत है!
सांस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं आंखों में
पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं
इक सफर है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं, जिए जाते हैं…
-गुलज़ार
याद बन जाएगा!
टूट जाएगी तुम्हारी जिद की आदत उस दिन,
जब पता चलेगा कि याद करने वाला अब याद बन गया!
उदासी का सबब
खामोश बैठें तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नहीं,
जरा-सा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछते हैं।
यूं तो मैं भी…!
झूठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता,
डुबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने…
संभालें न संभालें
अब आपकी मर्जी है संभालें न संभालें। खुशबू की तरह आपके रुमाल में हम हैं। -मुनव्वर राणा
ग़ज़ल जैसा था!
तुमसे बिछड़ा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था!
-मुनव्वर राणा
आह को चाहिए
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होने तक! -मिर्ज़ा ग़ालिब
कयामत तो रोज आती है
अब कयामत से क्या डरे कोई, अब कयामत रोज आती है
भागता हूं मैं ज़िंदगी से खुमार, और नागिन डेसे ही जाती है
आलम इंतजार का
उलफत के मारों से न पूछो आलम इंतजार का
पतझड़ सी है जिंदगी और खयाल बहार का।
ये मोहब्बत कैसी
दिल तोड़कर वो मेरा खश हैं
तो शिकायत कैसी…
अब मैं उन्हें खुश भी न देखूं
तो फिर ये मोहब्बत कैसी…
दर्द देने से डरते हैं
हम तो मजाक में भी किसी को
दर्द देने से डरते हैं
न जाने लोग कैसे सोच-समझकर
दिलों से खेल जाते हैं
न जाने कब इश्क हो जाए
एक न इक रोज़ तो होना है ये जब हो जाए, इश्क का कोई भरोसा नहीं कब हो जाए।- मुनव्वर राणा
गहरी बात
चंद रातों के ख्वाब उम्र भर की नींद मांगते हैं।- गुलज़ार
मौन का रिश्ता है ये
उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए उससे और न बोला जाए मुझसे।- मिर्जा गालिब
पर आंसू निकल पड़े
मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह,
जी ख़ुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े- क़ैफी आजमी
इश्क की किस्मत
इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी, जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में। – कैफी आजमी
दिल के पास
बहुत दूर मगर बहुत पास रहते हो
आंखों से दूर मगर दिल के पास रहते हो
मुझे बस इतना बता दो
क्या तुम भी मेरे बिना उदास रहते हो
शायरी
कभी हम पर वो जान दिया करते थे
जो हम कहते थे, मान लिया करते थे
अब पास से अनजान बनकर गुजर जाते हैं
जो कभी दूर से ही हमें पहचान लिया करते थे
इश्क के मआनी
तेरा वजूद तेरी शख्सियत, कहानी क्या
किसी के काम न आए तो जिंदगानी क्या
हवस है जिस्म की, आंखों से प्यार गायब है
बदल गए हैं सभी इश्क के मआनी क्या
किस्मत
हर आईने की किस्मत में तस्वीर नहीं होती
हर किसी की एक जैसी तकदीर नहीं होती
बहुत खुश नसीब हैं वो जिनके हाथों में
मिलने के बाद बिछड़ने की लकीर नहीं होती
चाहत की कशिश
नजरें मिले तो प्यार हो जाता है
पलकें उठे तो इजहार हो जाता है
न जाने क्या कशिश है चाहत में
के कोई अंजान भी हमारी
जिंदगी का हकदार हो जाता है
चाहत का गम
तुम चाहो या न चाहो, इसका गम नहीं
तुम पास से गुजर जाओ, तो चाहत से कम नहीं
माना के मेरी चाहतों की तुम्हें कद्र नहीं
कद्र मेरी उनसे पूछो, जिन्हें मैं हासिल नहीं
शायरी
जरा नजरों से देख लिया होता,
अगर तमन्ना थी डराने की…
हम यूं ही बेहोश हो जाते,
क्या जरूरत थी मुस्कुराने की!!
जिंदगी में बदलाव
वक्त बदलता है जिंदगी के साथ
जिंदगी बदलती है मोहब्बत के साथ
मोहब्बत नहीं बदलती अपनों के साथ
बस अपने बदल जाते हैं वक्त के साथ
गांठों का सबक
खुल सकती हैं गांठें, बस जरा से जतन से…
पर लोग कैंचियां चलाकर, सारा फसाना बदल देते हैं।
समझदार कौन
समझदार एक मैं हूं बाकि सब नादान। बस इसी भ्रम में घूम रहा आजकल हर इंसान।
तेरी यादों के निशान
तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे।
बीमार का हाल
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
दिल की बातें
दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आजकल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत
-शुजा खावर
दिल को तेरी चाहत पे
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है,
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
-अहमद फ़राज़
दिन सलीके से उगा
दिन सलीके से उगा रात ठिकाने से रही,
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही
-निदा फ़ाज़ली
जहां दरिया समंदर से मिला
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,
जहां दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता…
ख़ामोश ज़िंदगी
ख़ामोश ज़िन्दगी जो बसर कर रहे हैं हम,
गहरे समंदरों में सफर कर रहे हैं हम
-रईस अमरोहवी
बेवफाई के आदाब
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से ना तोड़ा तुमने,
बेवफ़ाई के भी कुछ आदाब हुआ करते हैं
रेशम देने वाले कीड़े
खुशियां देते वक्त अक्सर खुद ग़म में मर जाते हैं
रेशम देने वाले कीड़े रेशम में मर जाते हैं
-खुशबीर सिंह शाद
आप कहकर जो पुकारो…
आज भी दिल्ली में कुछ लोग हैं ऐसे कि जिन्हें
‘आप’ कहकर जो पुकारो तो बुरा मानते हैं
-राहत इंदौरी
उठाया गोद में मां ने तो…
बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ,
उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ!
-मुनव्वर राणा
किसी की आंख में रहकर
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
-बशीर बद्र
डरते हैं ऐ ज़मीन
ऐ आसमां तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़,
डरते हैं ऐ ज़मीन तेरे आदमी से हम
ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की आदत
कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की आदत भी है हमको कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है
हमें ढूंढेगी कल दुनिया
हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है
हमें ढूंढेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में
जो बाज़ार में रखे हो
अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है?
जो भी निकलेगा वो पूछेगा ही, कीमत क्या है…
मोहब्बत से मोहब्बत का सिला
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें,
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं।
-साहिर लुधियानवी
बच्चे समझते हैं
हुकूमत पर्दा-पोशी में बहुत मसरूफ़ है लेकिन,
कहां से आ रहा है ये धुआं, बच्चे समझते हैं।
-मुनव्वर राणा
मेरे जूनून का नतीजा
मेरे जुनून का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
-अमीर क़ज़लबश
बरसात का दीवाना बादल
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है, किस छत को भिगोना है…
-निदा फ़ाज़ली
रिश्ते गर होते लिबास
जिंदगी किस क़दर आसां होती
रिश्ते गर होते लिबास
और बदल लेते क़मीज़ों की तरह…
-गुलज़ार
चुपके-चुपके रात दिन
चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है,
हमको अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है
राहत इंदौरी का शेर
तू जो चाहे तो तेरा झूठ भी बिक सकता है,
शर्त इतनी है, सोने का तराज़ू रख ले
-राहत इंदौरी
बस एक मां है जो…
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक मां है, जो कभी ख़फ़ा नहीं होती।
शराफत की क्या अहमियत
शराफतों की यहां कोई अहमियत ही नहीं, किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है।
वह अक्लमंद है
वह अक्लमंद कभी जोश में नहीं आता, गले तो लगता है, आगोश में नहीं आता।
हमें पता है
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो, हमारा शहर तो यूं ही रास्ते में आया था।
गुलज़ार का एक शेर
आओ सारे पहन लें आइने, सारे देखेंगे अपना ही चेहरा।
जी भरके रो लेने दो
खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे, ऐसे में जो हो पाएगा वो हो लेने दे। इक उम्र पड़ी है सब्र भी कर लेंगे, इस वक्त तो जी भरके रो लेने दे।
कैसे कोई सोए
कुछ लोग ख्यालों से चले जाएं तो सोएं, बीते हुए दिन-रात न याद आएं तो सोएं।
वो तो इन आंखों के ख्वाब मांगते हैं
तलब करें तो ये आंखें भी उनको दे दें हम, मगर वो तो इन आंखों के ख्वाब मांगते हैं…
ख्वाब दुनिया के
ज़िन्दगी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के
बस रहे हैं दिल में फिर भी ख्वाब दुनिया के
हर दिन फ़साने चाहिए
तुम हकीकत को लिए बैठे हो तो बैठे रहो,
ये ज़माना है इसे हर दिन फ़साने चाहिए।
बहुत दिनों से इन आंखों को…
बहुत दिनों से इन आंखों को यही समझा रहा हूं मैं,
ये दुनिया है, यहां तो इक तमाशा रोज़ होता है…
ज़मीं किसी की नहीं
ज़मीं किसी की नहीं आसमां किसी का नहीं,
ना कर मलाल कि कोई यहां किसी का नहीं
हर दर पर जो झुक जाए
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते
बहुत ऊंची इमारत
बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है
-मुनव्वर राणा
बेहतर दिनों की आस में…
बेहतर दिनों की आस लगाते हुए ‘हबीब’
हम बेहतरीन दिन भी गंवाते चले गए
सामने अपने आईना रखना
जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
मिलना-जुलना जहां ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौंसला रखना