Hijab Controversy : राम मंदिर, 370 के बाद अब 'समान नागरिक संहिता' की बारी? हिजाब के रास्ते पूरा होगा BJP का एक और एजेंडा? |

Hijab Controversy : राम मंदिर, 370 के बाद अब ‘समान नागरिक संहिता’ की बारी? हिजाब के रास्ते पूरा होगा BJP का एक और एजेंडा?

आर्टिकल 370, राम मंदिर और समान नागरिक संहिता बीजेपी का कोर अजेंडा रहा है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दूसरे कार्यकाल में 370 हटाने का वादा पूरा किया। इसके बाद अदालती फैसले से मंदिर निर्माण भी शुरू हो गया है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : February 14, 2022/12:32 pm IST

नईदिल्ली। Uniform Civil Code, Hijab Controversy: कर्नाटक हिजाब विवाद को लेकर पूरे देश में बहस और दलीलें देखने को मिल रही हैं। कोई हिजाब पर बैन धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताता है तो कोई स्कूल, कॉलेज में यूनिफॉर्म होनी चाहिए न कि मजहबी पहचान के पक्ष में तर्क रख रहा है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि हिजाब और यूनिफॉर्म की दलीलों के बीच कहीं बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड के रास्ते में तो आगे नहीं बढ़ रही?

हमारे 𝕎𝕙𝕒𝕥𝕤 𝕒𝕡𝕡 Group’s में शामिल होने के लिए यहां Click करें.

दरअसल, आर्टिकल 370, राम मंदिर और समान नागरिक संहिता बीजेपी का कोर अजेंडा रहा है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दूसरे कार्यकाल में 370 हटाने का वादा पूरा किया। इसके बाद अदालती फैसले से मंदिर निर्माण भी शुरू हो गया है।

read more: दूसरे वनडे में बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण में सुधार के साथ उतरेगी भारतीय महिला टीम

इधर हिजाब विवाद के बीच मतदान से पहले उत्तराखंड के सीएम ने समान नागरिक संहिता का राग छेड़ दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वादा किया है कि अगर सूबे में बीजेपी फिर सत्ता में आई तो समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) को लागू करेगी। जोकि हमेशा से बीजेपी के अजेंडे में शामिल रहा है और चुनावी वादों का हिस्सा रहा है। तो क्या हिजाब विवाद के बीच बीजेपी समान नागरिक संहिता लागू करने के रास्ते पर बढ़ रही है?

 

वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने 3 प्रमुख वादों पर मांगे वोट

गौरतलब है कि 1998 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने 3 प्रमुख वादों पर वोट मांगे थे- अनुच्छेद 370 का खात्मा, अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर का निर्माण और देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना। अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में बीजेपी ने 13 पार्टियों का गठबंधन एनडीए बनाकर सरकार गठित की। बहुमत नहीं होने और गठबंधन धर्म की मजबूरियों के चलते बीजेपी अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कुछ खास नहीं कर पाई।

read more: अगले महीने मोदी सरकार लेगी बड़ा फैसला ? 24 करोड़ लोगों को मिलेगी ये खुशखबरी

Uniform Civil Code, Hijab Controversy:  2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला। इसके बाद भी पहले कार्यकाल में इन मुद्दों पर पार्टी कुछ अलग नहीं कर पाई। 2019 में लगातार दूसरी बार बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद तस्वीर बदली है। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही अगस्त 2019 में मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर दिया। अयोध्या विवाद में मंदिर के पक्ष में अदालती फैसला आने से बीजेपी का एक और बड़ा चुनावी वादा पूरा होने का रास्ता साफ हो गया। नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिया। अब तो बीजेपी के प्रमुख अजेंडों में समान नागरिक संहिता ही है, जिसका पूरा होना बाकी है।

समान नागरिक संहिता का विवाद 70 साल से भी ज्यादा पुराना है। संविधान सभा में इस पर लंबी बहस चली थी। संविधान का जो मसौदा तैयार किया गया था उसके आर्टिकल 35 (संविधान अपनाए जाने पर जो आर्टिकल 44 बना) में कहा गया, ‘राज्य संपूर्ण भारत क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा।’

read more: जीआईसी से 1,284 करोड़ रुपये जुटाएगी एशिया हेल्थकेयर

 

मुस्लिम समुदाय समान नागरिक संहिता के लिए तैयार नहीं

ज्यादातर मुस्लिम प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया। उनकी मांग थी कि इस आर्टिकल में ऐसा कुछ भी न हो जो नागरिकों के लिए पर्सनल लॉ को प्रभावित करे। संविधान सभा में महशूर वकील और पश्चिम बंगाल से मुस्लिम लीग के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने दलील दी कि मुस्लिम समुदाय समान नागरिक संहिता के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा, ‘175 सालों तक शासन के दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने कभी पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप नहीं किया…मुझे कोई संदेह नहीं है कि एक वक्त ऐसा आएगा जब सिविल लॉ एक समान होंगे। लेकिन अभी वह वक्त नहीं आया है…हमारा लक्ष्य समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ना है लेकिन यह धीरे-धीरे होना चाहिए और संबंधित लोगों की सहमति से होना चाहिए।’

पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू कोड बिल 1955 के जरिए हिंदू पर्सनल लॉ के संहिताकरण की कोशिश की। तब हिंदू सांसदों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और पूछा- क्यों सिर्फ हिंदुओं के पर्सनल लॉ में दखल दिया जा रहा है, मुस्लिमों या ईसाइयों के पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध क्यों नहीं किया जा रहा?

तब हिंदू सांसदों की आपत्ति पर नेहरू ने नजीरुद्दीन अहमद की ही दलीलों को दोहराया, ‘मुस्लिम समुदाय अभी तैयार नहीं है।’ जेबी कृपलानी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने नेहरू पर यह कहकर तंज कसा, ‘सिर्फ हिंदू महासभा वाले ही इकलौते सांप्रदायिक नहीं हैं। ये सरकार भी सांप्रदायिक है, इसे आप चाहे जो कहिए। ये एक सांप्रदायिक कदम उठा रही है। मैं आप पर सांप्रदायिकता का आरोप लगा रहा हूं क्योंकि आप सिर्फ हिंदू समुदाय के लिए एक विवाह वाला कानून ला रहे हैं। मैं कह रहा हूं कि मुस्लिम समुदाय इसके लिए तैयार है लेकिन आप में ही हिम्मत नहीं है…अगर आप हिंदू समुदाय के लिए ये चाहते (तलाक के प्रावधान) हैं तो कीजिए, लेकिन कैथोलिक समुदाय के लिए भी कीजिए।’

read more: दूसरे वनडे में बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण में सुधार के साथ उतरेगी भारतीय महिला टीम

 

समान नागरिक संहिता को लेकर नेहरूवादी हिचक

समान नागरिक संहिता को लेकर नेहरूवादी हिचक आगे भी बरकरार रही। मौलाना खुलकर सरकारों को चेताते रहे। कभी ये कि अगर आप ऐसा करेंगे तो हमारी धार्मिक भावनाएं आहत होंगी, कभी ये कि ऐसा नहीं करेंगे तो धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। दशकों तक सुप्रीम कोर्ट समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक वर्ग की थरथराहट पर तंज कसता रहा। सरकारें बस इतना ही कहती रहीं कि आर्टिकल 44 में संविधान निर्माताओं ने जो इच्छा जताई है, उसे हासिल किया जाएगा।

हिंदू पर्सनल लॉज के कोडिफिकेशन के 3 दशक बाद सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो बेगम मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने क्रिमिनल प्रोसेजर कोड की धारा 125 के तहत फैसला दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भी इद्दत की अवधि के बाद उसके पति की ओर से तब तक गुजारा भत्ता मिलेगा, जबतक वह दूसरी शादी नहीं करती।

मौलानाओं और मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव के आगे राजीव गांधी सरकार झुक गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) ऐक्ट, 1986 लाई।
2001 में डैनियल लतिफी, 2007 में इकबाल बानो केस और 2009 में शबाना बानो मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मुस्लिम महिलाओं को धारा 125 के तहत मिले फायदों से वंचित नहीं किया जा सकता

read more: केरल पुलिस के बेड़े में 49 फोर्स गुरखा एसयूवी शामिल

1985 के शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘पर्सनल लॉ में टकराव वाली विचारधाराओं को हटाकर समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करेगा।’ 1995 में सरला मुद्गल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जहां 80 प्रतिशत से ज्यादा नागरिकों के लिए पर्सनल लॉ को लेकर पहले से संहिता है तब इस बात का कोई औचित्य नहीं दिखता कि भारत के सभी नागरिकों के समान नागरिक संहिता क्यों नहीं है।’

जॉन वल्लामट्टोम केस (2003) में सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में जो लक्ष्य तय किए गए हैं, उन्हें हासिल किया जाना चाहिए। लेकिन आजादी के 7 दशक बाद भी वही पुरानी नेहरूवादी दलील जारी है- मुस्लिम समुदाय तैयार नहीं है। लेकिन अब शायद भाजपा को लगता है कि जब इसके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट भी है और सरकार भी पूर्ण बहुमत में तो क्यों न इस पर निर्णय लिया जाए?

 
Flowers