अनदेखी के शिकार जलीय दुर्ग ‘रन गढ़’ के संरक्षण के लिए प्रशासन ने की पहल

अनदेखी के शिकार जलीय दुर्ग 'रन गढ़' के संरक्षण के लिए प्रशासन ने की पहल

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  • Publish Date - December 20, 2020 / 07:16 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:40 PM IST

बांदा (उप्र), 20 दिसंबर (भाषा) वर्षों से अनदेखी का शिकार बांदा जिले के ‘रनगढ़’ किले के विकास और संरक्षण की खातिर स्थानीय प्रशासन इसे राज्यस्तरीय पुरातत्व विभाग को सौंपने के प्रयास कर रहा है।

स्थापत्य कला के लिए मशहूर यह किला बुंदेलखंड के बांदा जिले में केन नदी के बीच जलधारा में बने होने की वजह से दुर्लभ ‘जलीय दुर्ग’ माना जाता है।

अठारहवीं सदी के इस किले को भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग ने क्षेत्रफल कम होने के कारण अपने अधीन लेने से इनकार कर दिया, लेकिन चित्रकूटधाम मंडल बांदा के आयुक्त इसे राज्य स्तरीय पुरातत्व विभाग के अधीन किये जाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि किले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।

मंडल आयुक्त गौरव दयाल ने कहा, ‘रनगढ़ किला दुर्लभ जरूर है, लेकिन इसका क्षेत्रफल बहुत कम है, जिससे भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग इसे अपने संरक्षण में लेने से इनकार कर चुका है। केन नदी की जलधारा के बीच बने ‘जलीय दुर्ग रनगढ़’ के विकास और संरक्षण के लिए राज्य स्तरीय पुरातत्व विभाग से लगातार संपर्क किया जा रहा है।’

उन्होंने कहा कि पर्यटन की दृष्टि से रनगढ़ किला अति महत्वपूर्ण है। यदि इसका समुचित विकास हो जाये तो यहां विदेशी पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो जाएगी और आस-पास के गांवों में रहने वाले लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

बांदा जिले की नरैनी तहसील की उपजिलाधिकारी वन्दिता श्रीवास्तव ने बताया कि जहां पर केन नदी की जलधारा में यह किला बना है, वह जलधारा उत्तर प्रदेश के बांदा और मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में विभाजित है।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में किले का कुछ भाग छतरपुर जिले के हिस्से में आता है। यही वजह है कि किले का अब तक समुचित विकास और संरक्षण नहीं हो पाया है।’

यह किला नरैनी तहसील मुख्यालय से महज सात किलोमीटर की दूरी पर पनगरा गांव के नजदीक केन नदी की बीच जलधारा में बना है। यह करीब चार एकड़ क्षेत्रफल में फैला है और चट्टानों पर काफी ऊंचाई पर स्थित है।

अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार, 18वीं सदी में जैतपुर (महोबा) के राजा जगराज सिंह बुंदेला ने इसके निर्माण की नींव 1745 में रखी थी, लेकिन 1750 में उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे कीर्ति सिंह बुंदेला ने 1761 में इसका निर्माण पूरा करवाया था।

यह किला स्योढ़ा-रिसौरा रियासत की महज एक सैनिक सुरक्षा चौकी के रूप में था, जो जलीय मार्ग से मुगलों के आक्रमण से बचने के लिए निर्मित करवाई गयी थी।

इतिहासकार शोभाराम कश्यप बताते हैं, ‘पन्ना (मध्य प्रदेश) के नरेश महाराजा छत्रसाल के दो बेटे द्वयसाल और जगराज सिंह बुंदेला थे। बंटवारे में द्वयसाल को पन्ना स्टेट और जगराज सिंह को जैतपुर-चरखारी (महोबा) स्टेट मिला था। पहले स्योढ़ा गांव जैतपुर-चरखारी स्टेट का एक जिला था और अब बांदा जिले का महज एक गांव है।’’

भाषा सं आनन्द वैभव

वैभव