बिलासपुर की अधिकांश सीटों पर पेंच, त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति, तय होगी सत्ता की राह
बिलासपुर की अधिकांश सीटों पर पेंच, त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति, तय होगी सत्ता की राह
रायपुर। छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दोनों तरफ से जोर आजमाइश तेज हो गई है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी बस्तर से मिलती है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार यह मिथक टूट भी सकता है। उनका दावा है कि इस बार सत्ता की चाबी बिलासपुर संभाग से होकर निकलेगी। इस लिहाज से भी यहां का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। सत्ता की चाबी यहां से मिले या नहीं, लेकिन इस बार के चुनाव में बिलासपुर की एक-एक सीट में जीत हार का बड़ा महत्व है। बिलासपुर को छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहा जाता है। यहां विधानसभा की कुल सात सीटें हैं, जिनमें पांच सामान्य और एक अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। बिलासपुर की सातों विधानसभा में पक्के प्रत्याशी हैं, मतलब वे लंबे समय से जीत हासिल करते आए हैं। लेकिन इस बार चुनावी गणित में बदलाव होने की संभावना जताई जा रही है।
बिलासपुर की सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है मरवाही। इस विधानसभा सीट पर कई सालों से जोगी परिवार का कब्जा रहा है। यहां से फिलहाल अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी विधायक हैं। लेकिन इस बार यहां के सियासी समीकरण में बदलाव होने के आसार प्रबल हैं। फिलहाल मरवाही से कांग्रेस ने गुलाब सिंह राज को उतारा है और बीजेपी से अर्चना पोर्ते उम्मीदवार हैं। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। इस लिहाज इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति साफ नजर आ रही है। यह आदिवासी के लिए आरक्षित सीट है। पिछले चुनाव में अमित जोगी सर्वाधिक मतों से जीत कर आए थे।
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इसके बाद नंबर आता है कोटा सीट का। यह भी जोगी परिवार की परंपरागत सीट है। यहां से अजीत जोगी की पत्नी डॉ रेणु जोगी कांग्रेस की विधायक हैं, लेकिन कांग्रेस ने रेणु जोगी को टिकट नहीं दी है और विभोर सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जबकि बीजेपी ने काशीराम साहू को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं, क्योंकि टिकट कटने के बाद रेणु जोगी जोगी कांग्रेस से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वैसे कोटा सीट पर पिछले 66 सालों से एक ही पार्टी ने जीत का परचम लहराया है। पिछले 14 विधानसभा चुनावों से कांग्रेस का ही यहां बोलबाला रहा है।
तखतपुर विधानसभा सीट पर भाजपा का एकछत्र राज है, लेकिन इस बार अजीत जोगी की पार्टी भी पूरे दमखम के साथ उतर रही है। बिलासपुर जिले में अजीत जोगी का अच्छा खासा वर्चस्व है। ऐसे में भाजपा को यहां अपना ताज बचाए रखने में मुश्किलात हो सकती है। तखतपुर से कांग्रेस ने रश्मि सिंह और बीजेपी ने हर्षिता पांडे को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में इस सीट पर जीत हार के नतीजे दोनों पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बिलासपुर की एक और सीट है बिल्हा की। यह सीट दो जिलों के नक्शे में शामिल है, इस सीट का आधे से ज्यादा हिस्सा मुगेली और एक हिस्सा बिलासपुर जिले में आता है। बिल्हा का चुनावी रण भाजपा के धरमलाल कौशिक और जोगी कांग्रेस के सियाराम कौशिक के नाम रहा है। बिल्हा से कांग्रेस से राजेन्द्र शुक्ला उम्मीदवार हैं। यहां भी त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति नजर आ रही है। ऐसे में यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि त्रिकोणीय मुकाबले में किसे फायदा होता और किसको नुकसान। बिल्हा सीट से दोनों दल हर बार एक ही चेहरे को मैदान में उतार रहे हैं, लेकिन वोटर एक प्रत्याशी को दूसरी बार मौका नहीं देते। यानी हर बार जीतने वाला प्रत्याशी और पार्टी बदल जाता है।
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बिलासपुर विधानसभा सीट पर पूरे राज्य की नजर है, इसे राज्य की हाईप्रोफाइल सीट में से एक माना जाता है, हालांकि यह हमेशा से ही भाजपा का गढ़ रहा है। भाजपा विधायक अमर अग्रवाल यहां से चार बार चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के लाख एक्सपेरिमेंट के बाद भी यह सीट उसके हाथों नहीं आ पाई है। कांग्रेस ने यहां से शैलेष पांडे को प्रत्याशी बनाया है। जबकि यहां से अटल श्रीवास्तव की मजबूत दावेदारी थी। उनको दरकिनार करके पार्टी ने शैलेष पांडे को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि इसके खिलाफ नाराजगी भी साफतौर पर देखने को मिली, लेकिन देखना होगा कि इसका कितना असर चुनाव में पड़ेगा।
बेलतरा विधानसभा भी भाजपा का मजबूत किला है। परिसीमन के बाद 15 वर्षों से यहां भाजपा के बद्रीधर दीवान ने यहां जीत दर्ज करते आए हैं। कांग्रेस के लिए इस बार यहा अपनी विजयी गाथा लिखना आसान नहीं होगा। कांग्रेस ने राजेन्द्र साहू और बीजेपी ने रजनीश सिंह को उतारा है।
मस्तुरी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। लेकिन कांग्रेस ने यह जीत बीजेपी के विजयी रथ को रोककर हासिल की है। पिछले विधानसभा चुनाव में दिलीप सिंह लहरिया ने भाजपा के कृष्णमूर्ति बांधी को हराकर कांग्रेस को अविश्वसनीय जीत दिलाई थी। इस बार भी दोनों चिरपरिचित उम्मीदवार आमने सामने हैं।
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सीटों के लिहाज से पलड़ा कभी कांग्रेस का भारी होता है तो कभी भाजपा का। हालांकि कुछ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी की भी स्थिति अच्छी है। इस बार बसपा और जोगी कांग्रेस का समझौता हुआ है। इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता है, लेकिन राज्य बनने के बाद से पार्टी जिले में एक भी सीट नहीं जीत पाई है। वोट शेयर के गणित में कांग्रेस की स्थिति भाजपा के मुकाबले बेहतर नजर आती है।
जिले में भाजपा और कांग्रेस के दो-दो सुरक्षित गढ़ है। राज्य बनने के बाद मरवाही और कोटा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। कोट सीट तो लंबे अर्से से कांग्रेस के पास है। इसी तरह बिलासपुर सीट पर भाजपा का कब्जा है। वहीं, पहले सीपत और फिर परिसीमन के बाद बने बेलतरा सीट पर भी भाजपा का बीते तीन चुनाव से कब्जा है। भाजपा के अमर व बद्रीधर लगातार जीत रहे हैं।
राज्य गठन के पहले चुनाव में जिले में आठ सीटें थीं। भाजपा की लहर के बावजूद पार्टी आठ में से केवल तीन ही सीट जीत पाई। पार्टी को करीब 35 फीसद वोट मिले। 2008 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर महज दो फीसद बढ़ा, लेकिन पार्टी पांच सीट जीत गई। 2013 में वोट शेयर में मामूली बढ़ोतरी हुई, लेकिन सीट फिर सिमट कर तीन ही रह गई।
2013 में कांग्रेस को जिले में करीब 44 फीसद वोट और चार सीटें मिलीं। 2008 में 39 फीसदी वोट शेयर के बावजूद कांग्रेस केवल अपने दोनों गढ़ मरवाही और कोटा ही बचा पाई थी। 2003 में पार्टी लगभग 44 फीसद वोट शेयर के साथ पांच सीटों पर काबिज थी।
बिलासपुर में कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ने की सबसे बड़ी वजह मरवाही सीट है। इस सीट से दो बार अजीत जोगी व पिछली बार उनके पुत्र अमित जोगी ने चुनाव लड़ा था। तीनों ही बार यह सीट प्रदेश की सर्वाधिक अंतर से जीती गई सीट बनी।
पार्टियों के वोट शेयर पर एक नजर
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पार्टी भाजपा कांग्रेस
वर्ष वोट सीट वोट सीट
2003 35.22 03 43.94 05
2008 37.15 05 39.02 02
2013 37.76 03 43.96 04
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सीट 2003 2008 2013
मरवाही 78.16 75.62 83.92
कोटा 71.51 71.66 77.37
तखतपुर 71.14 70.04 77.28
बिल्हा 71.86 68.34 76.79
बिलासपुर 62.40 61.30 60.72
बेलतरा 72.85 65.00 69.60
मस्तुरी 62.31 66.94 74.88
जरहागांव 67.32 (परिसीमन में सीट समाप्त)
वेब डेस्क, IBC24

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